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जैसा की हम स्वतंत्रता के बाद से ही देख रहे है की कांग्रेस ने नई-नई समस्या को तैयार कर फिर उनको हल करने का तगमे अपने सर पर रखना चाहती है. बिगत पञ्च वर्षीय योजना से ही नक्सली अपने को अच्छी तरह से स्थापित करने में सक्षम हुए और यह सरकार वोट के लिए कड़े कदम नहीं उठा सकी जिसके कारन आज ऐसी समस्या सर उठा कर खड़ी हो गयी. हिंदुस्तान की सारी फ़ौज हार गयी. नक्सली विजयी रहे. उन जवानों को मार गिराया गया जिनके प्रक्षिशन में लाखों रुपये खर्च हो गए.
पहले मरे और आज फिर मर गए. इस देश में आदमी बहुत सस्ता है. सरकारी आदमी व सरकारे भी आदमी को मरवा देती है. यह कोंग्रेस सरकार भी अभी भी कोई कार्यवाही न कर उसे और उठाएगी फिर पैसा लुटायेगी और इसके बाद किसी नेता की मौत को भुनाएगी. इस देश की भोली जनता उसके साथ जुड़ जाएगी. कोई मरे, सरकार क्या करे? और यह कर भी नहीं सकती है. जवान है मरते रहेंगे और नए बनते रहेंगे, देश में एक क्या दसियों दंतेवाडा बनते और बसते रहेंगे.
ऐसा भी नहीं कि इस समस्या को ख़त्म न किया जा सकता हो, लेकिन यदि ऐसे ही खात्मा हो गया तो फिर इन जवानों कि क़ुरबानी कब काम आएगी. चुनाव होता या फायदा कि राजनीति का वख्त तो जरूर यह समस्या ख़त्म हो गयी होती.
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