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आतंक विरोधी दिवस का तमाशा

BEBASI
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भारत देश विसाल देश है, यहाँ विभिन्न प्रकार के उत्सव व दिवसों का आयोजन होते ही रहते है. इस देश की सभी पार्टियाँ अपने व जातीय उत्सव मनाया करते हैं. राजीव गाँधी भी उसी आतंकवाद के शिकार अपनी गलती से हुए. इंदिरा जी भी उसी आतंकवाद को बढ़ा कर उन्ही के द्वारा मरी गयी. भाई सांप पालोगे तो वह तो एक न एक दिन तो कटेगा ही. हर तरह से कोसिस कर अब नक्सलवाद को लेकर नया आतंकवाद आया तो नया रूप सामने है. अब वह आदमी खाने को तैयार हैं.

भारत में राजनैतिक पार्टिया अपना हित या सत्ता के लिए धर्मं को, जाती को, खाप को, हत्या को, न जाने किस-किस वजह को तलास लेती हैं. अब कांग्रेस को ध्यान आया है कि कोई मुद्दा तो है ही नहीं, नक्सल या इसी प्रकार की आतंकी गतिबिधियों को, जिन्हें वह अभी तक बढाती रही है अब उन्ही के सहारे उनके खात्मे का दावा अपने सर लेकर फिर से सत्ता आने का हथियार बनाना चाहती है.

सरकार के पास मजबूरी है नक्सली समस्या के समाधान या खात्मे का. हिम्मत जुटी जा रही है और उसके साथ विपक्षी मुद्दा न हथिया पायें, इसका भी उपाय किया जा रहा है. लेकिन शायद कांग्रेस नहीं जानती की जिस वोट के लिए उसने नक्सल को नहीं रोका, उसी तरह अन्य पार्टियों ने भी अच्छा विरोध नहीं किया. जनता जुल्म सह कर शांत हो जाती है क्योकि उसकी सुनने-सुनाने को कोई तैयार नहीं होता. मनाओ आदमी के मरने का एक नया उत्सव या कुछ भी नाम दे दो, सत्ता तुम्हारी है, तुम्हे ही सबकुछ करना है. उसी विष-बेल को सींचो और फिर काटो यही तुम्हारा सिधान्त है. सत्ता तुम्हारा उद्देश्य.

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