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आम आदमी और आदमी में फर्क तो है ही. जो कुछ नहीं है, भोले-भले है, इन गन्दी हरकतों से अलग थलग पड़े है, किसी प्रकार के लूट-खसोट में लिप्त नहीं है वो ही तो आम आदमी है. नहीं तो आज हर स्तर पर एक अलग आदमी बैठा हुआ है. अब तो इन सत्ता नसीनों ने गाव के भोले- भले आदमियों को भी ऊपर उठा कर भ्रष्ट कर आम आदमी से अलग कर दिया. अब मरेगा भी तो आम आदमी. वह तो मरेगा नहीं, जो किसी न किसी प्रकार से आम आदमी से भिन्न है.
अब मरने वाला किसी साईकिल से मरे तो भला कैसा मरना, उसको तो सरकारी अभिलेखों में भी नहीं दर्ज किया जाता है अर्थात ऍफ़.आइ.आर. भी नहीं लिखी जाती और वह मर जाता है. ट्रक पर सवारी के रूप पर बैठ कर मरता है तो वह भी पता नहीं चलता क्योकि यदि सरकारी अभिलेखों में दर्ज हो गया तो गैर कानूनी है. पुलिस की बदनामी होगी कि कानून व्यवस्था नहीं है. जब कि कही भी कानून व्यवस्था न होकर केवल धन व्यवस्था ही रह गयी है. टेम्पो-टैक्सी में भी मरने का कोई हवाला नहीं दर्ज होगा क्योकि यह भी पुलिस कि अपनी व्यवस्था है अर्थात डग्गामार आय का साधन. तो फिर कैसी रिपोर्ट, बस में यदि परिचालक ने टिकट बनाया तो ठीक नहीं तो आप का इससे मरना भी गैर सरकारी है. सरकारी सड़कों के गड्ढे में भी मरना गैर कानूनी है. हा इन्ही में कही थोडा भी ऊपर का व्यक्ति है तो फिर थोडा सा हो-हल्ला फिर शांति.
तो मनमोहन जी व अन्य आदमी के ऊपर वाले आदमियों, मै आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप अपने सर्कार में एक नया विभाग खोल कर आदमियों का वर्ग निर्धारित कर दें. आज जितने एक हवाई जहाज के हादसे में मरे, उससे अधिक हल की गर्मी, आंधी, बरसात व चक्रवात में मरे. रोज टैम्पो-टैक्सी,ट्रक व अन्य जरिया से ही यूं.पी. में मरते हैं. तब हमारा मुख्या मंत्री तक छोडो क्षेत्र का विधायक भी कभी देखने तक नहीं आता.
अत राजनीत का खिलाडियों अब जल्दी से आदमी को बाँट दो. तुम्हारी संवेदना कुछ स्तर के लोगों तक हा है, तुम्हारे कर्मचारियों की भी वही भूमिका है, जो आप की है. आप के स्तर के स्पस्टीकरण के बाद हमारे या किसी अन्य आम आदमी के मन में किसी प्रकार का मलाल नहीं रह जायेगा. आप की जय जय कर करने वाला कीड़ा जैसा का जीव जिसे मरना है उसकी चिंता भला किसे होगी. आप के मरने पर यही आम आदमी आप को संवेदना के दो शब्द जरूर बोलेगा. मनमोहन जी आप भी मरेंगे तो यही भोले-भले ग्रामीण आपकी बातो यद् कर कभी अफ़सोस भी नहीं करेंगे.
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