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जैसा की चर्चा है और अनुमान भी लगाया जा रहा है. अब मनमोहन के दिन ढलते दिख रहे है. न तो कभी पहले इस प्रकार के बयान आये या न ही इतनी राहुल के लिए तत्परता दिखाई गई. है कमान का दम भरने वाले मनमोहन को अब अनुमान हो चला है की आज नहीं तो कल जाना ही पड़ेगा. ही कमान भी अब ऊब भी चूका है.
जितनी फजीहत इस मंतिमंडल के सदस्यों ने कराइ शायद ही किसी ने कराइ हो. विदेशों में भी इन लोगों की वजह से देश को शर्मशार होना पड़ा. तमाम तरह की सफाई देनी पड़ी. जिस व्यक्ति को यह अहसास न हो कि ओफिसियल या व्यक्तिगत राय क्या है? ऐसे लोग सत्ता तक पहुँच गए और मनमोहन के साथ- साथ कांग्रेस को भी अपमानित होना पड़ा. सबकुछ अच्छा नहीं है पर चलता रहा. पूरे देश के ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह लगा कर जयराम रमेश ने भी कुछ अच्छा नहीं किया. हमारी प्रतिभा की पूरी दुनिया कायल है और सम्मान करती है.
हमारे ही घर से हमरे देश की प्रतिभा के खिलाफ आवाज उठे और नाकारा साबित करने की बात कही जाये तो समझो की जरूर मनमोहन और कोंग्रेस की कमी है. बर्दास्त की सीमा होती है और कोंग्रेस भी कब तक एक अनुशासन रहित प्रधानमंत्री को बर्दास्त करेगी. किसी ने महगाई को सही बताया तो किसी ने कुछ न कुछ कहकर महगाई को पर वाकई मुहर लगायी.
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