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खाप का खौफ

BEBASI
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पंचायत तो ठीक बराबर होती है परमेश्वर के. लेकिन खाप तो लगातार अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए खौफ को बदावा दे रही है, और अब राष्ट्रीय खौफ पैदा करने जा रही है. सरकार जैसे की तीन यादवो के खौफ से जातिगत नागरिको की गिनती करने जा रही है. तो क्या सरकारे खौफ से चलेंगी. निर्णय खौफ से लिए जायेंगे. सरकार इतना कमजोर होकर भी एक विशाल देश में शासन चला रही है.

किसी को शादी का हक़ देना तो एक अच्छी बात है लेकिन उसे मजबूर करना ही खाप का न्याय है. भारत में तो कबायली सभ्यता तो नहीं है न ही ऐसा कोई शासन है. हाँ मुस्लिमों की अपनी फतवा नीति तो है. दारुल उलूम जैसी संस्था खामखाँ अपनी जबरदस्ती की भाषा बोला करती है. यह सही, वह गलत. सरे आम फतवा जारी होता है उसे अमल में करने की धमकी दी जाती है. खप हो या कबायली सरकार या उलूम या कोई फतवा यह केवल गरीब के लिए ही हैं.  समरथ यानि की यदि वह पैसे आदि से संपन्न है तो वह जो कह दे समाज में वही कानून है और बेचारा धन से हीन व्यक्ति बात मानने के लिए बाध्य है. साधन संपन्न व्यक्ति के धन से ही धार्मिक व्यवाथाये चलती है, फिर भला उनका या उनके विरोध में फतवा कैसा.

खाप भी कही उन्ही पूंजीपतियों या  सत्तानशीं लोगो का किया धरा तो नहीं की किसी न किसी तरह से हमारी समाज में पकड़ या झूठी शान बनी रहे. सरकार को भी सचेत होकर निर्णय लेना चाहिए. आज खाप है तो कल को समाज के न जाने कितने खाप जैसे अन्य पंचायतें है. सावधान गलत या सही को ध्यान में रख कर ही खाप को समाज का बाप बनाने का कानून वधता स्वीकार न करे.

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