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कानपुर हो या कोई और नगर हर जगह यदि किसी तरफ निगाह दौड़ेगी तो मोबाईल टॉवर्स ही टावर्स दीखते है. यू. पी. में तो जैसे कोई नियम या कानून नाम की चीज ही नहीं रह गयी है. जहाँ देखो वहां पर टावर्स ही टावर्स दिख रहे हैं. कानपुर के किसी मोहल्ले में ऊपर कोई भी टावर दिख जायेगा. नगर निगम से कोई न तो पूछता है न ही अनुमति लेता है. यदि कोई आता भी है तो वह पैसे के बल पर सही व मानक पर खरा उतर रहा है. किसी की जान जा रही है तो जाया करे. कभी भी गिर सकने वाले ये टावर बिलकुल खतरे की घंटी हैं. सरकार की अनुमति हो तो भी क्या मानक के अनुसार कब कार्य हुआ, कोई नहीं जानता की कितना ख़राब कार्य किया गया. नगर निगम या के.डी.ए. के अभियंता तुरंत ले-दे कर सब लीपा-पोती कर देते हैं.
स्वास्थ्य की तो बात ही नहीं की गयी. सारे देश के स्वास्थ्य की बात को लेकर इतनी सवेदन्हीनता भारत जैसे ही देश में संभव है. वो तो भला हो उन लोगों का जिन्होंने मेहनत कर स्वास्थ्य के प्रति कोर्ट के जरिये आवाज उठाई. नहीं तो इस देश में आवाज उठाने वाले को हमेशा-हमेशा के लिए स्वर से हीन कर दिया जाता है. सारे देश को कम से कम उस साहसी व्यक्तित्व का ऋणी होना चाहिए की उसने एक नहीं समूचे देश के लिए अपने समय व धन आदि को बर्बाद कर हर व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा का कार्य किया. जो नहीं कर सका उसे कोर्ट से करवा दिया. आज ऐसे लोगो को आगे बढाने का कार्य हम लोगों को करने चाहिए.
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