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देश के एक सैकड़ा से ऊपर आदमी तो मर चूका ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस रेल में. किन्तु अभी तक जांच में ही राजनीति हो रही है. हिंदुस्तान का नेता सुधरने का नाम नहीं ले रहा है. किसी को बचाने के लिए तो किसी को फ़साने के लिए सेना से लेकर पुलिस का दुरूपयोग करता रहता है. देश का नागरिक है तो वह मर रहा है, सरकार यह तै करने में असफल है कि वह क्या करे? रा व सी.बी.आइ. सभी का भरपूर शासन की सियाशत में उपयोग किया जा रहा है. जब कोई नेता किसी प्रकार से सरकार की खिलफत करता है, तो उसे उसकी संपत्ति या किसी पुराने केस में फशा कर बेबस करने की कोसिस की जाती है.
खैर कोई नहीं चाहता सत्ता से बैर. लेकिन यदि कोई घटना होने पर यदि जांच में तय करने को लेकर खीच-तान की जाये तो समझो कि उस देश के नागरिक का क्या होगा. आदमी कि मौत क्यों और कैसे हुई यदि इसकी जांच के लिए केंद्र व राज्य सरकारें बहस कर हंस रही है. सवाल उठता है कि आखिर घटना कैसे हुई, कर्मचारी कि लापरवाही से, आतंकी गतिबिधियों से या फिर नक्सलियों से, या फिर किसी नए ग्रुप या अपराधी से. कोंग्रेस या फिर सरकार सुन लो यही गति रही तो तुम्हारी भी वही गति होगी पब्लिक भी तुम्हारे साथ राजनीति करेगी. समय है यह जांचो कि कैसे घटना हुई न कि यह करो सरकार खुश होगी या अन्य कोई.
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