उतर प्रदेश में एक दहसत से बेबसी पैदा करने का चलन हो गया है. मोहल्ले में हो या सादी-बरातों में गांवदारी हो या चुनाव सभी में एक नई संस्कृत पैदा हो गयी है कि बन्दूक या फिर अवैध असलहा कट्टा या चोरी- छिपे ख़रीदे गए पिस्टल-रायफल आदि का खुले आम प्रदर्शन तथा फायर कर आम आदमी को बताया जाता है कि हममे दम है. हमारी बात या फिर हमसे मत टकराना वरना हम हैवान बन आपका जीवन ले-लेगें.
कहीं सरकार तो है ही नहीं, जो है तो वह भी गरीब या फिर निम्न स्तर के मानव के लिए नहीं बल्कि मजबूत, सम्पर्की, दारू-मुर्गा आदि के द्वारा पुलिस को खुस करनेवाले के लिए है. बस यहीं से बात ख़त्म हो जाती है और बेबसी का अनोखा मायाजाल प्रारंभ हो जाता है. आलम तो यह है कि किसी प्रकार से भी कोई गरीब-गुरबा अपनी बात खुल कर नहीं कर पा रहा है.
समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाला व नई पीढ़ी को रास्ता दिखानेवाला अध्यापक वर्ग भी है, जो कि एक अच्छी भूमिका निभा कर नई रास्ता दिखा सकता है. किन्तु उसने भी अभी हल के प्राइमरी के अध्यापक संघ के चुनाव हुए. खुले आम असलहा धारी आये और दहसत का माहौल कायम कर अपने आदमी को अध्यापक बना कर चले गए. अख़बार में फायर करते हुए दिखने के बाद भी शासन ने किसी प्रकार कि कोशिश तक नहीं कि दहसत की बेबसी किसने पैदा की. अब आप ही जान सकते हैं कि शिक्षा व समाज को अच्छी राह देने वाले हाँथ किस प्रकार की शिक्षा देंगे.
उतर प्रदेश में दहशत का राज है. थोडा सा लोगो को दबा दीजिये, बस देखिये किस प्रकार से कोई भी लूट करते रहो. लोग भय से जुबान नहीं खोलेंगे. अभी हल के दिनों में आप सब ने देखा होगा कि सरकारी योजनाओ में किस प्रकार कि लूट चल रही है. कोई जुबान न खोले इसके लिए उसी इलाके के किसी दबंग का सहारा अफसर लेते हैं. यदि कम फिर भी न बने तो पुलिस है, यदि फिर भी न बने तो अफसर तो अपने है ही. पूर्व के तहसील दिवस पर किसी नागरिक ने आवासीय योजना की शिकायत की तो उस बी.दी.ओ. ने उसका गिरेबान पकड़ कर घसीटते हुए डी.ऍम. के पास ले गया और फिर पुलिस से पकड़ा दिया गया. एक किसान यूनियन के सदस्य को तो दलाल तक कहा गया. एक दहशत का वातावरण बना और धांधली की शिकायत करनेवाला दर गया. दहसत ने फिर बेबसी का वातावरण बना दिया. एक तो शिकायतें वैसे भी उन्ही लोगों द्वारा देखी जाती हैं जिनकी शिकायत की जाती है. है अजूबा सी बात. अपराधी कभी न्याय करेगा. यदि करता होता तो आज अपराध नहीं होता.
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