ये देश है की तमाशा? यहाँ कानून नाम की चीज ही नहीं है. लोग कानून तो जानते ही नहीं बल्कि अपना जो कर रहे हैं उसे ही कानून समझते है. पर्यावरण के तमाम कानून की पीड़ा से जहाँ कुछ लोग जूझ रहे है तो कुछ लोग मस्त हैं. उनका कानून कुछ बिगड़ नहीं पा रहा है. कानून तो अच्छे है पर उनका पालन कराने वाले केवल पैसे में मस्त हो गए है. अब समझिये की मोटर गाड़ियों के होर्न कितने इस समय खतरनाक हैं. यह तो वहां के बगल से निकलने पर या फिर आवाज की तीब्रता सुनाने पर ही महसूस होता है. तब लगता है की कहाँ चले गए कानून का पालन करने वाले. जनरेटर से होनी वाली आवाज से सभी आस-पास वाले तंग लोग सो नहीं पाते. किसी न किसी धार्मिक कार्यक्रम में रातभर होने वाली आवाजे तंग करती है. कानून भी क्या कर सकता है जब किसी देश का नागरिक ही अच्छा नहीं होना चाहता है. यह तो हुई ध्वनि प्रदूसन की बात.
यही हाल देश में पानी की है. गंगा तो अपने को हिंदुस्तान में होने को रो रही है. कितने गंदे लोग यहाँ पर है की पैर भी छूते हैं और पूजते भी है लेकिन गंदिगी से पीछा नहीं छुडाते. पीनेवाले पानी की भी वही स्थिति है. कभी – कभी तो ट्रीट कर दिया नहीं तो ऐसे ही गंदे पानी की आपूर्ति कर दी. अब आदमी पिए या कोई और उन्हें क्या. उसी पानी में गंदिगी जा रही है और उसी को पीने के लिए उपयोग किया जा रहा है. सीवर का पानी, फैक्टरी का गन्दा पानी और न जाने क्या-क्या गंदगी फिर से नदी में बहा दी जाती है.
आज जो सबसे अधिक परेशानी हो रही है वह है हवा की प्रदूषण से. तमाम तरह के उद्योग, फैक्टरी, सवारी वाहन और भाडा वाहन से तरह-तरह की बीमारियाँ हो रही है. गर्मी भी बढ रही है. इसलिए यहाँ कोई भी बंदिश नहीं की आप कैसा कार्य करे की हवा स्वच्छ व ताज़ी रहे. कही भी किया प्रकार का उपाय नहीं किया जा रहा कि कैसे प्रदूषण से बचा जाए.
यही है बेबसी कि हम मजबूर है गंदे जल को पीकर, गन्दी हवा की स्वांस लेकर, शोर भरे, वृक्ष रहित वातावरण में जीने को. हम तैयार है आज पर्यावरण दिवस मानाने को.
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments