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अब तो कुछ सोंचो, नए अक्लाव्य मत तैयार करो. एकलव्य बनोगे तो इतिहास ख़त्म हो जायेगा. इस समाज के द्रोणाचार्य टाईप के लोग अब गर्दन मांग लेते है. तब तो इतना ही अच्छा था की द्रोणाचार्य ने केवल अंगूठा से कम चला लिया था और एक कमजोर और छोटे समाज के व्यक्ति का इतिहास केवल संभ्रांत लोगो के लिए ख़त्म कर दिया था. किन्तु आज का द्रोणाचार्य गर्दन चाहता है. सीधे से दे दो तो ठीक है, नहीं तो जबरदस्ती ले लेता है और तुरंत ही हमेसा के लिए इतिहास क्या उसके होने का प्रमाण ही ख़त्म कर देता है.
अब लोग फिर से द्रोणाचार्य पैदा करना चाहते है. इसके लिए बाकायदा योजना चलाई जा रही है. एक तो कुछ करने-सिखने न दो यदि सीख भी जाए तो आर्थिक धनाभाव में बेकार हो अपने आप दम तोड़ देगा या फिर कोई द्रोणाचार्य सर मांग लेगा. जब एकलव्य था तो उसके सामने अर्जुन जैसे धनुर्धन भयभीत थे. यह भी एकलव्य की लगन का परिणाम था. उसकी प्रतिभा बहुमुखी थी. चर्चा हुई , द्रोणाचार्य ने यह एकलव्य को इस कला से विहीन करने की जिम्मेदारी ली, और जा पहुचे उस महँ सक्शियत के पास, अगर उस समय कोई भी व्यक्ति उपस्थित होता तो शायद देखता की द्रोणाचार्य की मुखमुद्रा अत्यंत दयनीय होगी. सीधे सादे एकलव्य ने अंगूठा दे दिया. फिर द्रोणाचार्य को विराग हो जाना चाहिए था. द्रोणाचार्य की विद्या कमजोर थी तब तो एक योग्य व्यक्ति को अपंग करना पड़ा. वर्ना इतिहास बदला होता, द्रोणाचार्य की जगह एकलव्य होता. इतिहास में महाभारत में हर जगह से एकलव्य का कोई नाम ही नहीं है. बस एक जगह केवल आया, मात्र अंगूठा काटने के समय. इतिहास में एकलव्य और उसके परिवार का विवरण ही नहीं मिलेगा. साजिश देखिये कितनी भयानक थी समाज के लोगो की.
इसीलिए मेरा अनुरोध है अब नए एकलव्य मत तैयार करो.
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