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आज जब देश के २७ नवजवान सिपाही छत्तीसगढ़ के नारायणपुर एम् अपनी जान दे चुके है तब अपनों से ही अहर चुकी बेबस सरकार ने एक नया फरमान जारी कर दिया, अब नक्सलियों के प्रभाव वाले इलाकों से सीआरपीएफ को हटाया जायेगा. इन राजनीतिक या सत्ता के शिखर पर बैठे लोगो को जरा भी रंज नहीं है, इस देश के होनहार सैनिक / सिपाहियों कि बलि दी जा रही है. एक-एक जवान तैयार होने में न जाने क्या-क्या और कितना खर्च करना होता है. समूचे देश में न जाने कितने सिपाहियों को राजनीतिक भूल के कारन जान गवानी पड़ती है. खाली छतीसगढ़ में ही एक सकडा हमारे होनहार सैनिक काम आ गए, चिदंबरम को कोई रंज नहीं है. शायद सैनिको का भी दुर्भाग्य है और लगता है मरने के लिए ही बने है. अब हम चाहते है कोई बड़ा नेता की बलि दी जाये. नक्सली उतनी बड़ी समस्या नहीं जितनी कि यह नेता है.
कितना दुर्भाग्य है इस देश के सैकड़ो जवानों को खोने के बाद होश आया इस सरकार को और समझा हम गलत दिशा में जा रहे है. कितना आश्चर्य होता है जो देश अपने को विश्व में गिनता हो उसकी गणित अपने देश में ही फिट न हो रही हो. कैसा यह नेता इन सिपाहियों को मरवा कर देश के साथ अपघात कर रहे है. कोई भी सरकारी मूवमेंट में पहले से प्लान बनाया जाता है उसके बाद ही इस प्रकार के निर्णय लिए जाते है. लेकिन यहाँ तो उल्टा समझ में आया. कितना अचम्भा होता है जब यह जानकारी होती है कि भारत कि सरकार बेबस होकर नक्सलियों से हर मान सेना को वापस बुला रही है.
मै पहले भी इस पक्ष में रहा हूँ भारत सरकार जब-जब कांग्रेस की बनती है वह कुछ न कुछ ऐसी ही समस्या खड़ी करती जो देश के लिए नासूर बन जाती है. वह नासूर कभी-कभी खुद को भी नुकसान पहुचाता है. कांग्रेस के साथ ऐसा हो भी चूका है. इंदिरा गाँधी ने खालिस्तानी आतंकी को सह देकर अपनी जान गवाई. आखिर अपराधी तो अपराधी ही होता है, अपराध करना ही उसकी फिदरत होती है. जब भी दाव पड़ेगा व अपराध कर ही देगा. कांग्रेस कभी भी समस्या को ख़त्म न कर उसे बढ़ावा देती है. आज कांग्रेस की भारत सरकार बेबस और मक्कारों की भांति हर स्वीकार कर रही है.
मै तो साफ कहता हूँ इन सिपाहियों की हत्या की नातिक जिम्मेदारी स्वीकार कर अपने को सत्ता से बहार कर देना चाहिए.
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