- 282 Posts
- 397 Comments
यह भारत है, यहाँ एक ढूढो तो हज़ार मिलते है. पूरे देश में बेरोजगारों का बहुत बड़ा जमाकड़ा लगा हुआ है. हर तरफ पैसे का महत्वा बढ़ चूका है, हर हाथ काम के लिए बेचैन है. अब चले कश्मीर जहा अभी तक अशांति रही है. अब जब अमन चैन का समय आया है तो बेरोज़गारी इस कदर हाजिर हो जायेगी शायद सरकारों को भी पता नहीं होगा. यदि पता होता तो आज यह नौबत नहीं आती की जरूरत दस की है, पहुचे दस हज़ार है.
जहाँ बेरोज़गारी होगी वहां कुछ न कुछ तो गलत ही होगा कुछ भी सही नहीं होगा. अब लोग अच्छे बनाने के लिए बेचैन है ताकि शांति से जीवन व्यतीत कर सके, तो रोज़ी और रोटी की समस्या सामने खड़ी है. इसी का नतीजा है बुलाया गया दस को आये दस हज़ार. पहले जैसी न तो लोगो के पास काम रहा है और न ही उतना बिजनेस ही रह गया है न ही उतना कश्मीर का क्रेज़. अब तो जे विरले ही कश्मीर घूमने की योजना बना पाते है, विदेसी तो आते ही नहीं, अगर आते है तो आतंकित रहते है, पता नहीं कब क्या हो जाए. भला ऐसे गरीबी के वातावरण में कब तक जिन्दा रहा जा सकता है.
पूरे देश में सरकार कुछ भी नहीं कर पाई तो कश्मीर में कैसे कोई भी अच्छा काम करेगी. रोज़गार की कमी के कारण ही इतनी संख्या में प्रांतीय सेना में भारती के लिए लोग आये. ऐसा लग रहा है अब सेना की पहचान भी पहले से बहतर हुई है, तब तो लोग इतनी बड़ी संख्या में भारती होना चाहते है. सरकार है तो नौकरी भी बही दे पा रही. यदि देश में शांति लानी है तो रजगार का चक्र तो चलाना ही होगा, तभी पर पाया जा सकता है. वरना फिर से यही युवा आतंकी धरा से जुड़ने में जरा भी गुरेज नहीं करेगा. भूखो मरने से तो अच्छा है कुछ कर के ही मारा जाए, यही कहावत इन पर भी लागू होगी. नक्सली भी इसी तराह की समस्याओ के साथ पुलिस के उत्पीडन के साथ ही पैदा हुई है.
Read Comments