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मै सुरु से ही कहता आ रहा हूँ कांग्रेस के कोई भी मंत्री देश चलने में रूचि नहीं ले रहे. बल्कि वह आपस में ही उलझ कर एक दूसरे की टाँगे खिचाई कर रहे है. कांग्रेस आलाकमान केवल तमाशा ही तो देख रहा है. कुछ न करके उन्हें और देश के शर्मसार करने की आजादी दे रहे है. जब देश बिलकुल विदेशी मिडिया में कोसा नहीं जाता तब तक न तो आलाकमान ध्यान देता है और न ही प्रधानमंत्री. मामला चाहे थरूर का हो या फिर रामदास का या फिर कृष्ण का. सवाल यह है की आम जन की तरह पेश आने वाले लोग मंत्री पद तक जरूर किसी न किसी सीढ़ी के जरिये या फिर सिपारिस पर ही बने होगे. यही लोग केवल पैसा के लिए काम करते है और दूसरो की कोई भी बात बर्दास्त नहीं कर पाते. ऐसा लगता है जैसे हाईकमान भी इनके दवाब में कार्य करता है. इतने बड़े देश की जनता या अस्मिता के साथ इस प्रकार खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए था.
अभी हल में पाक में एक वार्ता का प्रयोजन किया गया, सभी जानते है देश की कोई भी वार्ता पाक के साथ किसी सार्थक निष्कर्स पर नहीं पंहुचा. फिर भी कोशिश जारी रहती है. यही वार्ता इस बार विदेश मंत्री कृष्णा के नेतृत्व में हुआ और बिना किसी निष्कर्स विवादों में घिर कर समाप्त भी हो गया. समाप्त होने के बाद भी विवाद जारी है. तमाम वयांबजी फिर भी जारी है. आज कृष्णा का बयां आया उसके अनुसार सभी प्रकार की गलती पिल्लई की है. विवाद जब सुरु हुआ जब मुंबई आतंकी हमले के मास्टर माइंड हाफिज सईद और भारत के गृहसचिव की तुलना पाक के मंत्री न कर दी. उसी जगह पर ही कृष्णा को सीधे-सीधे ही विरोध करना चाहिए था. किन्तु कृष्णा ऐसा नहीं कर सके और अपनी किरकिरी कराकर लौटे. वहां के मिडिया ने भी भारत की धज्जिया उड़ाने में कोई कसार नहीं की. सभी प्रकार का ठीकरा कृष्णा और उनकी टीम पर फोड़ा. समझ में नहीं आता कही पर कृष्णा सफल भी हुए है या फिर केवल पद ही ढो रहे है. पाक से वार्ता कभी भी कामयाब तो हो ही नहीं सकती जब तक अमेरिका इशारा नहीं करेगा. अमेरिका के इशारे पर ही पाक कश्मीर का मुद्दा लगातार उठता रहता है.
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