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यह देश की संसद हो या पार्टी सभी उद्देश्यहीन तरीके से चल रहे है. देश अपनी ही तरीके से चल रहा है. देश चलने और चलाने की जिम्मेदारी के साथ-साथ कुछ भी करने की जहमत उठाने से डरने से लगे है. आज यह सर्व दलीय बैठक में चर्चा हुई की कश्मीर पर चर्च की जाए, नॅशनल कांफ्रेंस के एक संसद ने कश्मीर पर चर्चा को रोकने की कोसिस की. उसने विरोध करते हुए कम करने के लिए कहा और चर्चा पर कश्मीर का वातावरण ख़राब होने की बात कही. कश्मीर ही सवेदनशील क्यों है, इतने राज्यों में नक्सली आन्दोलन चल रहे है उन लोगो ने तो चर्चा करने से तो नहीं मन किया, उन राज्यों को भी कहना चाहिए था और अपने को अलग कर लेने की कोशिश करना चाहिए था. यह संसद भी अलगाववादी ही होगा जो मन कर रहा है चर्चा को. समझने की कोशिश और अध्यन किया होता तो शायद यह संसद ऐसी बात बही करता.
किसी विषय पर चर्चा से ही हल निकलते है और फिर कश्मीर किसी पार्टी की बपौती नहीं जो मन कर सके. संसद में चर्च होगी, नई रहे निकलेगी और विकास के नए रस्ते विकसित होगे. कश्मीर हो या कन्याकुमारी सभी की चर्चा संसद में होगी. चर्चा होगी या नहीं ऐसी तो चर्च होनी भी नहीं चाहिए.
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