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उत्तर प्रदेश सरकार पर मौतों का भी नहीं असर

BEBASI
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जैसा की सभी भाई बंधू जानते ही होंगे. आज उत्तर प्रदेश की क्या स्थिति है और क्या हो रहा है. कोई भी कम पैसे के बिना नहीं होता. आपके पास पैसा है तो आप इस सरकार में सबकुछ कर सकते है और सबकुछ पा सकते है. यदि आपकी जान जाने से सरकारी कर्मचारी या अधिकारी का पैसा बनता है तो वह भी मंजूर है और वह आपकी जान लेने की भरसक कोशिश करेंगे. होता भी यही है, इसकी बानगी देखनी ही है तो आप कुछ दिन कानपूर देहात यानि रमाबाई नगर.

आज से एक महिना पहले के अख़बारों में निगाह डाले तो समझ में आ जायेगा की वहां पर कितना आदमी मर गया. और अभी कितना आदमी मर जायेगा. इसका अनुमान लगाना भी कठिन है. सरकारी उपायों में कोई दम ही नहीं और बस केवल रस्म अदायगी की जा रही है. लोग लगातार मर रहे है. जिले के अधिकारी और सरकारी मशीनरी केवल कागज बनाने में लगी हुई है और मानवता की सभी हदें भी पर हो गयी है. डाक्टर मशीहा है, जब मन चाहता है तो आता है, मन नहीं तो कोई बात नहीं. इनसे अगर पूछो तो यही उत्तर मिलेगा कोई मरा ही नहीं. न तो इंसानी भगवानो पर कोई असर पड़ रहा है न ही किसी अन्य पर. सरकारे है चल रही है और आदमी मर रहा है, कागज बनाये जा रहे है की कोई मरा ही नहीं.

उस देश के होनहार डाक्टरों में कितना कौशल होगा जो आज तक यही नहीं पहचान पाए की बीमारी कौन सी है. लगभग देश के सभी सरकारी अस्पतालों का यही हल है, कुल मिला कर इस उत्तर प्रदेश की तो है ही, इसमें कोई शक ही नहीं की केवल रस्मी तौर पर ही मरीज को देशा जाता है यदि कुछ दम हुई अर्थात कुछ पैसा का जुगाड़ दिखाई देता है तो उसे घर बुला लिया जाता है. उससे पैसे बना कर कुछ बचने की क्रिया की जाती है. अगर उसका इलाज आपरेसन से होना है, तो उस पर जरूर ध्यान दिया जाता है और किसी प्राइवेट अस्पताल में अपरेसन कर दिया जाता है.

इस देश की न तो कोई अस्पताल खोलने या बनाने के लिए नियम है और न ही कोई योग्यता निर्धारित है. अधिकतर अस्पतालों में अप्रक्षित लोग ही नर्स का काम कर रहे है. जिन्हें न तो उस भावना से मतलब होता है और न ही कुछ भी करना होता है. यह लोग केवल पैसे के लिए काम करते है और मरीज की मर्यादा का ख्याल न होकर केवल अपने वेतन जो की बहुत ही काम होता है, के लिए ही जोड़-तोड़ किया करते है. आदमी के मरने या फिर नर्सिंग की तकनीकी जानकारी न होने के कई उदहारण सामने आ चुके है, जैसे की कानपूर के चांदनी अस्पताल में व्यभिचार के बाद मरीज को मार ही दिया गया. कानपूर मेडिकल सेंटर में भी एक अपक्षित नर्स-मेल  द्वारा गलत इंजेक्सन से कोमा रहकर जान तक गवानी पड़ी.

कानपूर देहात में न जाने कितने लोग मार गए और न जाने कितने मार ही जायेगें. अस्पताल में कभी भी कोई अच्छा डाक्टर मिला होता और कुछ करने की सोचा होता तो शायद अवश्य कुछ न कुछ हल निकलता. लेकिन यहाँ का प्रशासन मृत है केवल पैसा की रह देखता है और पैसा ही कमाने की सोचता है. इस प्रदेश के लोगों का दुर्भाग्य ही कहा जाए की न तो सड़क में मरने में न तो किसी भी प्रकार से मरने पर अब सरोकार नहीं है. इस सरकार का कोई भी सरोकार नहीं है.

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