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पूरा कानपूर जान चूका है किस प्रकार से दिव्या के साथ जघन्य तरीके से और दरिंदगी से मौत के घाट उतरा गया. उसकी किसी से दुश्मनी तो थी नहीं और न ही उसकी माँ की थी. वहशी ने बहुत ही गतिया तरीके से उसके साथ अपनी वासना को शांत करने के बाद मौत के घाट उतर दिया. इस देश की सबसे ख़राब पुलिस बल अगर उत्तर प्रदेश की कहा जाए तो गलत न होगा. आज तक कानपूर व इसके आस-पास का आदमी संघर्स कर रहा है.
किसी राजनेता ने नही की मदद:—
कोई भी अभी तक राजनीतिक हो या अन्य इस कानपूर के व्यक्ति ने जो की सांसद या विधायक या अन्य लोकतान्त्रिक पद पर हो, उसने सहायता की कोशिस की हो. ऐसा नहीं लगता. किसी भी राजनेता में भी अब दम नहीं रही की वह उत्तर प्रदेश के पुलिस के खिलाफ खड़ा हो सके. और उसके खिलाफ कुछ कहने की हिम्मत जूता सके. किसी नेता या अन्य अधिकारी की बात होता तो कुछ और बात होती और उसके मरने की जांच फ़ौरन सीबीआई को सौप दी जाती.
आदमी-आदमी में फर्क कैसा: —-
क्या आम आदमी होना भी दुर्भाग्य है? अगर आप के पास पैसा है तो आप कुछ भी कर सकते है कानपूर के कई घटनाओ से तो ऐसा ही प्रतीत हुआ. पुलिस खुद घटनाओ के साक्ष्य मिटाने का काम करती है. आदमी-आदमी में फर्क कैसा. यदि फर्क है तो कानून कैसा? कानून की नजर भी असमान है तो यह भी कानून नहीं है. यदि वाकई भारत का कानून ठीक है तो अभी तक कुछ किया गया क्यों नहीं. कानपूर के भीतरगांव के में भी ऐसा ही हुआ, एक लड़की के साथ बलात्कार करने के बाद उसे एक खेत में डाल दिया गया और पुलिस ने उसे बरामद कर न तो मुकदमा लिखा और न ही कुछ किया मुल्गिम को छोड़ दिया और बलात्कारी धमकी देने लगा तो ग्लानी से वह लड़की आत्महत्या कर मर गयी. उस पैसा लेने वाले इंस्पेक्टर के कारन ही तो उस लड़की की मौत हुई, पैसा लेकर एक तो भ्रष्टाचार का कार्य किया और ऊपर से अप्रत्यक्ष रूप से उसके मरने में सहयोग किया. फिर भी केवल उसे ट्रांसफर कर संतोष दिला दिया गया. ऐसे ही एक घटना चांदनी नर्सिंग होम में हुई उसमे भी पैसा लेकर साक्ष्य मिटाने की कारवाही की गयी. यहाँ तक की सबकी देख देखि में ही एक डरा हटा दी गयी. मजे की बात यह है की अब पुलिस भी मुद्दई को धमकाने का काम करने लगी है.
अब तो बेचारी लाछार एक सोनू नाम की रोज कमाने-खाने वाली औरत की पुत्री दिव्या के साथ घटने वाली जघन्य अपराध के लिए उसकी आत्मा भी न्याय मांग रही. है हिम्मत तो दिलाओ उस मुलजिम को, उन भ्रष्टाचारी पुलिस वालों को और उन पनाह्गारों को, जिससे कम से कम उसकी आत्मा तो बेबस न हो.
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