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सीबीसीआईडी ने रविवार को अनुष्का उर्फ दिव्या की मौत मामले की जांच शुरू कर दी। उत्तर प्रदेश साकार ने आदेश कर न्याय दिलाने की बात का भरोसा दिलाने की कोशिश की. आज तक किस घटना में सीबीसीआईडी की भूमिका बहुत अच्छी रही है. बिना किसी लग लपेट के कौन सा निर्णय आया है. यदि आया होगा भी तो किसी न किसी दवाब में आया होगा. वैसे भरोसा करने लायक सीबीआई तो भी नहीं है. जब से राजनेताओ के भ्रष्टाचार के मुकादमा चला तब से सरकार बचने के लिए, इसकी जांचे और निर्णय आदि भी प्रभावित होते रहे है. किन्तु कुछ तो लोगो को विश्वास है ही.खास कर उत्तर प्रदेश में तो पक्का है. यहाँ की पुलिस वह खेल दिन दहाड़े करने में जरा भी नहीं हिचकती है और साक्ष्य मिटने के साथ- साथ गवाहों के साथ मुदई को भी बिगड़ा भविष्य दिखा कर शांत हो कर बैठने की सलाह देते है. नहीं तो मिटा देने की भी धमकी देने से बाज नहीं आते. छोटे स्तर यानि गरीब लोगो तो कीड़ा-मकोड़ा से कुछ ज्यादा नहीं समझा जाता है. ऐसा ही दिव्या की माँ सोनू के साथ भी किया गया. लाखों का ख्वाब दिखा कर समझौता व धमकाया तक गया है. यहाँ तक की पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों को भी बयान के नाम पर भय दिखाने का काम किया गया.
लेकिन भला हो उन हिम्मती डाक्टरों का जिन्होंने वही बात कहने की हिम्मत जुटाई जो वाकई सच थी. जब की कोर्ट में ही साक्ष्य के लिए डाक्टर को जाना पड़ता है और बयान करना होता है. लेकिन कानपूर पुलिस ने एक नै प्रथा डालने की हिम्मत कर डाली केवल कुछ लोगों को बचने के लिए.
आखिर ऐसी कौन सी ताकत है की पुलिस के नीचे से लेकर ऊपर तक सभी ने डीजीपी ने मुन्ना नामक युवक को ही मुख्य आरोपी घोषित कर दिया. आखिर क्यों?
क्या पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट झूठी थी जो कह रही थी की दिन में ही दिव्या के साथ घटना घटी. इतना ही नहीं विद्यालय में साक्ष्य मताए भी गए तो क्या यह सब झूठ था.?
सवाल उठता है ऐसी क्या बात है की उत्तर प्रदेश की पूरी की पूरी सरकार ही दिव्या के असली कातिलों को बचाना चाहते है.
कोई निर्दोष की जिन्दगी जेल में क्यों सड़े?
प्रदेश के न्याय के मंदिर व अधिकारी या अन्य की आँखे क्यों नहीं खुली ?
क्या गरीब या सत्ता से दूर कम असरदार मनुष्य सीबीआई जांच नहीं पा सकते है?
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