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सामाजिक कार्यकर्त्ता होने का मतलब यह नहीं की वह देश की अश्मिता के साथ खिलवाड़ करे. भारत कितना विशाल था क्या इसे नहीं मालूम, यदि नहीं तो इस तरह का बयां नहीं देना चाहिए था. यदि किसी और देश में होते तो अब तक किसी तरह का विवाद खड़े करने की स्थिति में ही नहीं रहेता. अरुंधती ने इतिहास नहीं पढ़ा. पाकिस्तान भी इसी हिंदुस्तान का हिस्सा है बांग्लादेश भी इसी हिंदुस्तान का हिस्सा है. फिर कशिर क्यों नहीं होगा. अरुंधती तुम तो देश को तोडना चाहिती हो देश की नीतियों को मरोड़ना चाहिती हो, जबकि देश की को एक सामाजिक कार्यकर्ता आदमियों को प्रेम की झंझिरों में जकड़ता है न की सामाजिक कड़ियों को बिखेरता है.
हमारी देश की नीतियों को अगर कमजोर कोई कर रहा है तो वह है कांग्रेस. हमने एक बार यह इशारा किया था की अब क्या कांग्रेस कश्मीर पाक को सौपेगा. हमें तो यही लग रहा है की कांग्रेस की सोची- समझी नीति के कारन ही इस तरह का बयान आया और कांग्रेस ने कोई खास तवाजो नहीं दिया. आखिर लोग देश के साथ खिलवाड़ कर शीर्ष में कैसे बने रहते है. नेहरू की बोई फसल न जाने कितनो की जाने ले गयी और न जाने कितने का आर्थिक नुकसान किया. सत्ता की गलत नीतिया ही देश को गर्त में पंहुचा देती है.
बात कहने वाले को भी अहसास होना चाहिए किसी भी व्यक्ति को किसी प्रकार की मानसिक व अन्य प्रकार की क्षति तो नहीं होगी. इस देश के सभी हिस्से है. जब देश स्वतंत्र हुआ था तभी कश्मीर को भी एक करने की इच्छा गाँधी जी व पटेल जी की थी किन्तु वह तो नेहरू अपने नजदीकी रिश्तेदार की वजह से अड़ गए और कश्मीर को अपनी बपौती समझ एक विवादित नीति की घोषणा कर दी. तब यह विविअद पैदा हुआ. और नेहरू के रिश्तेदारों की भी घटी में ही बेइज्जत ही नहीं होना पड़ा बल्कि वहां के अधिकांश हिन्दुओ को पलायन करना पड़ा केवल इसी कमी की वजह से.
अरुंधती को चाहिए था की इस प्रकार के भ्रामक बयान न जारी कर कोई आदमी से आदमी को जोड़ने वाला बयान देना चाहिए था.
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