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इस देश की बिडम्बना है की जो भी कुछ पैसा बना लेता है या किसी ऊंची पोस्ट में रह लेता है तो वह इस समाज से ऊपर हो जाता है. तभी तो वह गरीबी के उस दौर को भूल जाता है और एक श्रेणी ऊपर वाली यानि धनवानों या रोजगार परक श्रेणी बना लेता है. तभी तो गरीब या देश के निचले पायदान को मिले अधिकारों को ख़त्म करने की कोशिश करने लगता है. वह आदमी से अपने निजी काम कराकर उन्हें ही अपने से नीचे समझने लगता है. तभी तो उन अधिकारों को बेवजह और वेकर साबित करने में जुट जाता है. ऐसा ही इस देश के RTI कानून के साथ हो रहा है. किसी न किसी प्रकार से उसे ख़त्म ही कर देना चाहता है. या फिर उसे दंतविहीन करना चाहता है. आखिर इतनी कौन सी मजबूरी आ जाती है की सूचनाओ को देने में ही लोग आना-कानी करने लगते है.
अभी हाल में हमारे देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के वर्तमान अध्यक्ष के. जी. बालाकृष्णन ने एक मत व्यक्त किया की RTI Act का दुरुपयोग हो रहा है. अगर इश देश का नयय्कर्ता ही ऐसी बातें करेगा तो भला कानून को ख़त्म करने वालों का हौसला बढेगा ही. जो जानकारी देने योग्य नहीं है उसे वैसे ही विभाग नहीं दे रहा है. तो भला जो जानने योग्य है वही तो पूछा जायेगा, तो फिर भला इसका दुरूपयोग कहाँ. आप देख ही रहे है की इस देश के उत्तर प्रदेश में तो तमाम ऐसे ही विभाग है जहाँ आज तक कोई भी जानकारी ही नहीं दी गयी है. कुछ भी नहीं हुआ और ना ही कोई धनराशी उनके वेतन से काटी गयी. अब भला दुरूपयोग कैसे हुआ. मई अपने पूर्व प्रधान न्यायाधीश और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के वर्तमान अध्यक्ष के. जी. बालाकृष्णन से चाहूँगा की यदि मेरा सन्देश उन तक पहुचे तो मुझे इन सवालों का जवाब अवश्य दें. मई तो आपसे इस बात की आपेक्ष रखता था की जिन लोगो ने आज तक सूचना नहीं दी है उन्हें सजा का भी प्रावधान किया जाए. आशा है की आप भी वही बातें ने दोहराएँ जो दूसरे इस देश को लूटने के लिए ही तो इस कानून को ख़त्म करना चाहते है.
माननीय मुझे आपका बयां पढ़ कर ठेस पहुची है की जिन सूचनाओ को आम जनता को दिया जा सकता है क्या वही उसका दुरूपयोग है तो फिर उपयोग क्या हुआ? मै आपसे आज भी आपेक्षा रखता हूँ की जो लोग सूचना मंगेत है और उनको सूचनाएँ न देकर मखौल उडाया जा रहा है उस कानून की समीक्षा करते हुए उन अधिकारियो को सजा की शिफारिश भी करेंगे.
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