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पहले मई सुना करता था ब्लॉग्गिंग- ब्लॉग्गिंग पर हिम्मत ही नहीं होती थी और यही सोचता था लिखू क्या? कही ज्यादा कटु न हो जाए जो कोई हमारे लिखने के पीछे नहीं बल्कि जान के पाचे पड़ जाए. इस देश की यही बिडम्बना है की लूटने के लिए ही दूसरों को रस्ते से हटाया करते है. जब की उन्हें भी के ने के दिन मरना ही होता है. फिर भी लोहग है की मानते नहीं, और आदमी को मरे जा रहे है. केवल पैसे को ही अपने सफलता और कामयाबी समझने वाले कानून को वाकई उँगलियों पर नचाया करते है. लोगो का खून पीते है और अपने को आदमी से ऊपर समझते है. यही कारन है की एक से एक बड़े लिखने वाले भी हिम्मत नहीं कर पा रहे. अब तो मीडिया भी लिखने में संकोच बरतने लगा है. कानूनों अड्चानो व समाज में मौजूदा बदलाव के कारन भी मीडिया में यह बदलाव आ रहा है.
मै कह रहा था समाज में जो दिख रहा है नया तो वही लिख रहा है जो उसे पसन् है किन्तु पुराना आज भी समाज के हित के लिए लड़ने की साहस कर रहा है. मै जब जागरण में अपने विचार लिखने लगा तो एक मीडिया से जुड़ने के ब्लॉग होने का कारण कुछ साहस हुआ और मैंने आज एक सैकड़ा मुद्दों को उछाला. भले ही उन्हें अच्छा प्रदर्शित न कर सका हूँ, लेकिन मैंने समाज की विषमताओं को पिरोने का कम किया और आगे भी करता रहूँगा. आप सब ने एक बार मुझे प्यार से साहस भी बंधाया था उसी का परिणाम है की आज हम कुछ भी कर सके आप सभी को मै अपने तरफ से हार्दिक धन्यवाद देते है की आप सभी ने हमें साहस बंधा कर कुछ लिखने लायक बनाया.
हम आप सभी से यह आपेक्षा भी करते है, आज सरकारी धन के लूट की जो परंपरा बन चुकी है उसे हटाने के लिया मिलकर संघर्ष करें. समाज में कमितों को उजागर करना भी एक काम ही होता है. इसी के साथ आप सभी से हम पुनः स्नेह की आपेक्षा करते है.
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