BEBASI
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सादिया बीती हैं
रातें बीती हैं,
दिन बीते हैं,
न जाने कितने इंसानों के
जीवन बीते हैं.
खूब बहलाया, खूब समझाया
हर रात्रि को तुमने एक दीप जलाया
जला भी, जगमगाया भी,
बदले युग में बदला
दवरूप दिए का.
हर देव, हर देवी के नाम
तुमने किये दीप तमाम,
इस बार बस करना इतना
हो सके तो एक दीप जला देना,
इंसानियत का, इन्सान के नाम
कुछ फूल नहीं,
बस इच्छाओं का
एक माला बना देना.
जीवन के हर पहलू में
दो बूँद मानवता के
जन मानस को न्योछावर कर देना,
इतनी सी बस विनती है बस
हो सके तो एक दीप जला देना.
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