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जेपीसी या पीएसी क्यों?

BEBASI
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घोटाले क्या होते है ? सरकार के सामने तमाम तरह के संकट खड़े हो जाते है ऐसा ही कुछ कांग्रेस के साथ हुआ है. अब तयारी है इन घोटालों पर पानी डालने की तो यही सोंचा जाता है आखिर ऐसा क्या किया जाए जिससे इन सभी झंझटो से निजात मिल जाए. A. raja भी अजीब निकला बेचारे पम को फशा गया. अब पूरी की पूरी सरकार ही सकते में आ गयी. तो बेचारा मनमोहन हल्ला मचा रहा है हम पीएसी के सामने तो पेश हो सकते है लेकिन जेपीसी का गठन नहीं कर सकते. तो अब हमें यह भी जानना चाहिए आखिर जेपीसी या पीएसी क्या है.?

जेपीसी अंग्रेजी अक्षर के JPC से बना है, जिसका पूरा मतलब होता है. ज्‍वाइंट पार्लियामेंटरी कमेटी. ज्‍वाइंट पार्लियामेंटरी कमेटी संसद की वह समिति जिसमें सभी दलों को समान भागीदारी हो. जेपीसी को यह अधिकार है कि वह किसी भी व्‍यक्ति, संस्‍था या किसी भी उस पक्ष को बुला सकती है जिसको ले‍कर जेपीसी का गठन हुआ है.अगर वह जेपीसी के समक्ष पेश नहीं होता है तो यह संसद की अवमानना का उल्‍लघंन माना जाएगा. जेपीसी संबंधित व्‍यक्ति या संस्‍था से इस बाबत लिखित या मौखिक जवाब या फिर दोनों मांग सकती है.

पीएसी अंग्रेजी अक्षर के PAC से बना है, जिसका पूरा मतलब होता है. पब्लिक अकाउंट्स कमेटी. पब्लिक अकाउंट्स कमेटी यानि खर्चे का हिसाब-किताब देखने वाली कमेटी. इस कमिटी का अध्यक्ष विपक्ष का नेता होता है. पीएसी कैग की रिपोर्ट की जांच करती है. पीएसी द्वारा तैयार की गई सिफारिश को सरकार मानने के लिए बाध्‍य नहीं है. शायद यही कारण है कि विपक्ष पीएसी नहीं जेपीसी की मांग कर रहा है.

बिलकुल खुल सा मामला सामने आ रहा है जेपीसी में तमाम पार्टियों के सांसदों को शामिल करने पड़ते है जबली पीएसी में केवल एक आदमी वह भी विपक्ष का होता है. इन राजनीतिक हमाम में सभी नंगे और भूखे होते है. यह सभी जानते है. एक आदमी को मानना यानि खरीदना या फिर भयभीत करना अति आसान होता है जबकि तमाम लोगो को जो विभिन्न दिमागों के होते है उन्हें मानना या अपने पक्ष में करना अति कठिन होगा.

जेपीसी की रिपोर्ट को मानना ही होगा जबकि पीएसी की सिफारिसों को मानना सरकार के लिए कोई भी जरूरी नहीं है.यह भी एक कारण है जिससे सरकार पीएसी से ही जांच करने को तैयार है. खुद प्रधानमंत्री भी राजी है पीएसी के सामने जाने के लिए.

कुल मिला कर आम आदमी सुद्ध यह भी समझ सकते है जैसा की हमने ऊपर कहा है खरीदना या मानना एक आदमी का तो आसान है किन्तु तमाम पार्टियों के तमाम दिमागों के लोगो को मानना कठिन ही नहीं असंभव भी है. यह सरकारी डकैती की घटनाओ से सभी अच्छी तरह वाकिफ है और जानते है कही न कही तंग फसेगी ही तभी तो रफा- दफा की नीति कायम करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष भी तैयार है और वह भी पीएसी का पक्ष लेकर जेपीसी को नकार चुकी है. यानि कि कांग्रेस अध्यक्ष भी भीतर ही भीतर भयभीत है.

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