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हाल में छत्तीसगढ़ की एक अदालत ने मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन को देशद्रोह का दोषी ठहराते हुए उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है. सुनकर जरा अटपटा लग रहा है. जरूर इस व्यक्ति ने कुछ सरकार के खिलाफ या मनचाही में रोड़ा अटकाया होगा. वरना इस देश में सरे आम दिन दहाड़े सरकारी लोग गेश को लुटे चले जा रहे है यानि गरीबों के हक़ में डाका दाल रहे है. कहीं उनका विरोध करने का नतीजा तो नहीं. सरकारी लोगों में तो कोई नक्सली का हिमायती तो नहीं जो इस सामाजिक कार्यकर्त्ता के खुले घूमने को लेकर परेशां और हैरान हो तो उसने यह सब ड्रामा रचाया हुआ हो. खैर अब तो न्यायलय ने उसे सजा दे ही दी है तो अब हम केवल हालातों पर ही निगाह दाल सकते है. क्या उन जंगलवासियों यानि जनजातियों के बीच अपने जीवन को समर्पण करने वाले के लिए यही सजा थी? जो दिन दहाड़े लूट खसोट कर रहे है वह अपनी मर्जी से सीबीआई के सामने पेश हो रहे है. यानि सीबीआई उनके हिसाब से चल रही है. यही तो असली देश्द्रोहो है न वह बेचारा जो सारा जीवन गरीबों को समर्पण करता हुआ जेल में पहुच गया.
अब हमें जानना ही चाहिए यह सेन है क्या चीज- बीबीसी हिंदी के अनुसार–
खादी का बिना प्रेस किया हुआ कुर्ता-पाजामा और पैरों में साधारण स्पोर्ट्स शू पहने 58 वर्षीय डॉक्टर बिनायक सेन को देखकर अक्सर उनके समूचे व्यक्तित्व का पता नहीं चल पाता.
समाजसेवी
छत्तीसगढ़ की शहरी आबादी भले ज़्यादा न जानती रही हो लेकिन वहाँ के दूरस्थ इलाक़ों के गाँव वाले और आदिवासी उन्हें अपने हितचिंतक के रुप में जानते रहे हैं. पेशे से चिकित्सक डॉ बिनायक सेन छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि लेते रहे हैं. उन्होंने छत्तीसगढ़ में समाजसेवा की शुरुआत सुपरिचित श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी के साथ की और श्रमिकों के लिए बनाए गए शहीद अस्पताल में अपनी सेवाएँ देने लगे. इसके बाद वे छत्तीसगढ़ के विभिन्न ज़िलों में लोगों के लिए सस्ती चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के उपाय तलाश करने के लिए काम करते रहे. डॉ बिनायक सेन सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार करने के लिए बनी छत्तीसगढ़ सरकार की एक सलाहकार समिति के सदस्य रहे और उनसे जुड़े लोगों का कहना है कि डॉ सेन के सुझावों के आधार पर सरकार ने ‘मितानिन’ नाम से एक कार्यक्रम शुरु किया. इस कार्यक्रम के तहत छत्तीसगढ़ में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार की जा रहीं हैं.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके योगदान को उनके कॉलेज क्रिस्चन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर ने भी सराहा और पॉल हैरिसन अवॉर्ड दिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य और मानवाधिकार के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जोनाथन मैन सम्मान दिया गया. डॉ बिनायक सेन मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ शाखा के उपाध्यक्ष भी रहे हैं. इस संस्था के साथ काम करते हुए उन्होंने छत्तीसगढ़ में भूख से मौत और कुपोषण जैसे मुद्दों को उठाया और कई ग़ैर सरकारी जाँच दलों के सदस्य रहे. उन्होंने अक्सर सरकार के लिए असुविधाजनक सवाल खड़े किए और नक्सली आंदोलन के ख़िलाफ़ चल रहे सलमा जुड़ुम की विसंगतियों पर भी गंभीर सवाल उठाए.
सलवा जुड़ुम के चलते आदिवासियों को हो रही कथित परेशानियों को स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया तक पहुँचाने में भी उनकी अहम भूमिका रही. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाक़े बस्तर में नक्सलवाद के ख़िलाफ़ चल रहे सलवा जुड़ुम को सरकार स्वस्फ़ूर्त जनांदोलन कहती रही है जबकि इसके विरोधी इसे सरकारी सहायता से चल रहा कार्यक्रम कहते हैं. सलवा जुड़ुम के ख़िलाफ़ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आवाज़ें उठाईं और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर सवाल खड़े किए. आख़िर 2010 में राज्य सरकार ने इसे बंद कर दिया है.
छत्तीसगढ़ की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने 2005 में जब छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम लागू करने का फ़ैसला किया तो उसका मुखर विरोध करने वालों में डॉ बिनायक सेन भी थे. उन्होंने आशंका जताई थी कि इस क़ानून की आड़ में सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. उनकी आशंका सही साबित हुई और इसी क़ानून के तहत उन्हें 14 मई 2007 को गिरफ़्तार कर लिया गया. छत्तीसगढ़ पुलिस के मुताबिक़ बिनायक सेन पर नक्सलियों के साथ साठ-गांठ करने और उनके सहायक के रूप में काम करने का आरोप है. हालांकि वे ख़ुद इसे निराधार बताते हैं और पीयूसीएल इसे सरकार की दुर्भावना के रुप में देखती है.
अब हम समझ चुके ही होंगे जिस कानून का इन सज्जन ने विरोध किया उसी में जेल भेज दिए गए. भारतीय लोगो ने चाहे कुछ भी न किया हो लेकिन विदेशों में इनके लिए प्रदर्शन भी किये गए और रिहा करने की मांग की गयी.
अब तो बहस होनी ही चाहिए असली देशद्रोही कौन है? किस सरकार में दम है जो इन इन सरकारी लुटेरों को देशद्रोह में परिभाषित करे?
एक बेचारा जो अपनी जिन्दगी को आम आदमी को समर्पित कर रहा हा और उसे जीवन देने के प्रयास कर रहा हो दूसरा जनता का धन लूट कर उनकी जीवन को गर्त में डालने के साथ ही कम कर रहा है. जीवन देने की छोडो जीवन ले रहा है. भारत का लूटा गया धन ही अगर इन गरीबों की सेवा में लगा दिया गया होता तो आज आत ही नहीं गरीबो के लिए योजनाओ की आवश्यकता ही नहीं रह जाती.
देश की जनता के धन को लूटने वाका देशद्रोही है या वे जो अपना जीवन ही जनता के लिए समर्पित कर रहे है?
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