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किसी अख़बार की लाईनों में देखा मायावती अब नीतिस जैसा आचरण करेंगी, तो विचार आया क्या मायावती नीतिस का पदचिन्हों पर चल सकेंगी? मेरा तो जवाब है कभी भी नहीं. आखिर क्यों? सत्ता में जब हर स्तर पर आम आदमी का शोषण हो रहा हो तो विचार धरा ही बदल जाती है. हर कोई उत्तर प्रदेश का निवासी बस केवल इस सरकार का विकल्प ही ढूंढ रहा है ऐसे में वैचारिक परिवर्तन करना एक चमत्कार जैसा ही होगा. यह चमत्कार तो मायावती और उनके सहयोगी लुटेरों के बस में तो नहीं. यदि किसी को खून का चस्का लग जाता है तो फिर इतनी आसानी से उससे किनारा करना कितना मुस्किल होता है, यह जरा किसी खून पीने वाले से ही पूंछे.
उत्तर प्रदेश में चमत्कार की कोई गुन्जाईस ही नहीं बची है. चारों तरफ हर चाहे वह प्रशासनिक तबका हो या फिर BSP का अदना सा कराकर्ता हो सभी तो हर काम के लिए जन मानस का घोर उत्पीडन कर रहे है. एक आध को मंत्रिमंडल से लोकायुक्त के आधार पर निकल कर कोई भी यह नहीं कह सकता की शासन पाक साफ़ हो गया. अभी हल के पंचायत चुनाओं में जिस तरह से धन बल के साथ सत्ता बल का खुल कर प्रयोग हुआ उससे साफ है बसपा ने कोई भी सबक नहीं लिया. जबकि प्रदेश से लेकर राष्ट्र तक के लोग नीतियां ही बनाने में जुटे है किस प्रकार से अपने को नितीश से बेहतर साबित कर सकें.
इस गरीब प्रदेश के जिसके आधौगिक नगरी कानपूर जैसे शहरों का सरकारी नीतियों के ही कारण देश के उद्योग पटल से गायब होना भी यही साबित होता है प्रदेश गरीबी की और बढ़ रहा है. यहाँ के सत्ता के हर पायदान पर बैठा राजनीतिक के साथ अधिकारी भी दिनों- दिन केवल अपनी आर्थिक ताकत को ही बढ़ने में जुटा हुआ है उसकी मानसिकता को बदलने में कोई चमत्कार ही करना होगा. तभी नितीश की रह प्राप्त होगी. कुछ पाने लिए बहुत कुछ खोने का लिए तैयार हो तभी कुछ संभव है.
अभी हल में पंचायत पद प्राप्त पदाधिकारी भी ग्रामीण स्तर पर बहुत ही निम्न स्तर तक की कमी करेंगे ही. इनको रोक पाना भी अब बसपा नेतृत्व के बस का नहीं है. आज अगर इस सरकार के सदस्यों के आर्थिक आय का आकलन किया जाए तो शायद ही है कोई भी ऐसा निकलेगा जिसने सरकार के इन दिनों में करोड़ों का खेल न किया हो. चलो यह तो खेल पैसे का था, कोई बात नहीं यहाँ तो लोगों को न जाने कैसे- कैसे मुकदमों में फसं कर उनका उत्पीँ किया गया जिससे प्रदेश में आम आदमी की कोई भी हैसियत विरोध की ही नहीं बची है. बस आदमी किसी तरह से अपनी इज्जत को बचाए फिर रहा है.
क्या इन सभी राहों से अब बसपाई वापसी करेंगे. इनके मुंह में जो सत्ता के मीठे खून का चस्का पद गया है उसे भुलाया जा सकेगा, नहीं न तो भला कैसे शाम्भव है नितीस की रास्ता?
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