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दमंगो की मारी शीलू बेचारी

BEBASI
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बांदा जिला उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में है यह तो हम सभी जानते है. यही से सुरु होती है बेचारी शीलू की कहानी. लड़की होना भी अभिशाप और वह भी गरीबी में, तो ठीक वैसा ही होता है जैसे नीम चढ़ा करेला. पिछड़े समुदाय में जन्मी शीलू की बदनसीबी उसकी माँ के स्वर्गवास होने के ही साथ सुरु हो गया था. यही से उसके लड़कपन में ही शोषण सुरु हुआ तो फिर बंद होने का नाम नहीं लिया.

बदनसीब बाप को जब नजदीकी रिश्तोदारों के द्वारा ही शोषण व खरीद फरोख्त की जानकारी हुई तो उसने हाथ पैर मारने सुरु किया और लड़की को अपने घर लाने की कोशिश की. इन्ही कोशिशो में शीलू की बेचारगी उजागर हुई और उसके शोषण की कहानी सामने आयी. बताते है की बदनसीब बाप मौजूदा सत्तासीन बसपा पार्टी का कार्यकर्त्ता था और कार्यकर्त्ता होने के नाते बांदा के मौजूदा विधायक पुरषोत्तम नरेश दिवेदी से परिचय भी था. गरीबी और बेचारगी से परेशां व हैरान मजबूर बाप ने विधायक से मदद मांगी और बेटी को चुदाने की अपील की. विधायक ने अपने बहुबल और प्रशासनिक बल पर उसे रज्जू पटेल से शीलू को छुडवाया.

यहाँ भी शीलू की बदनसीबी ने साथ नहीं छोड़ा और क्षेत्रीय विधायक होने के नाते एक पिता ने विश्वाश करते हुए अपनी बेटी को विधायक के यहाँ ही रख दिया ताकि उसे सुरक्षा नसीब हो सके और उसके भविष्य को सुरक्षित कर सके. कुछ दिन ही उसकी बेटी शीलू विधायक के यहाँ रही और बाद में उसे विधायक ने चोरी के इल्जाम में जेल भिजवा दिया. जेल में पहुचने के बाद ही उजागर हुई उसके साथ दुराचार होने की बात.

सवाल यह होता है किस प्रकार से उसने चोरी की और किन हालातों में विधायक को उसे जेल भिजवाना पड़ा. जरुर दुराचार की बात उजागर करने की धमकी के बाद ही या फिर रखैल न बनाने के चक्कर में ही ऐसा किया होगा.

इस देश के कुछ क्षेत्रो में खास कर बुंदेलखंड में आज भी जमींदारी प्रथा जैसी व्यवस्था जारी है. जो गरीब है वह अति गरीब है और लाचारी में आज भी जी हुजूरी में जीवन बीत जाता है. ऐसी हालत में ऐसा होना कोई कठिन बात नहीं है. आज भी उच्च जातियों के द्वारा पिछड़े वर्ग का शोषण बा दस्तूर जारी है. यही स्थितियां है जो ऐसे जघन्य अपराधों को जन्म देती है. हम चाहे जितना विकास और तरक्की का ढिढोरा पीट ले लेकिन वास्तविकता से मुख नहीं मोड़ सकता है. एक समाज के ठेकेदार या जनप्रतिनिधि द्वारा ऐसा करना थोडा मानवता का सर झुकाता है. सच भी है जब कोई भी व्यक्ति सर्व सक्ति संपन्न हो जाता है तो कुछ गलत तो कर बैठता है ही.

विधायक का यह कहना वह नपुंसक है या किसी बीमारी के चलते सेक्स नहीं कर सकता यह बात भी गले उतरती नहीं है. विशेषज्ञों का कहना है दवाओ के बाद सामान्य स्थिति में सेक्स किया जा सकता है. कैर यह तो सच है ही शासन व प्रशन के दवाब या निजी संबंधो के चलते ऐसा कुछ प्रमाण पत्र अगर विधायक को हासिल भी हो जाए तो कोई भी आश्चर्य की बात नहीं होगी.

जहाँ इस देश में किसी महिला के एक बयान के चलते किसी को भी जेल भेजा सकता है वही अपर इस प्रदेश में जांच या सी बी सी इ डी जांच के नाम पर किसी भी अपनों को बचने में कसर नहीं छोड़ती है. अभी हल में कानपूर की दिव्या कांड या चांदनी नर्सिंग होम का हादसा तो सभी को याद होगा ही, सभी केशों में अभियुक्तों का बचाओ या तो पैसा के लिए किया गया या फिर उनके रशूक के लिए.

शुक्रवार के समाचार पत्रों में भी शीलू के उम्र की जांच में भी उंगली उठाई गयी है, सत्यता तो उत्तर प्रदेश क्या अब इस देश में ढूँढना ही मुश्किल हो गयी है. खैर अब विश्वास तो करना ही पड़ेगा. यदि नहीं तो उस बेचारी शीलू की पैरवी कौन करेगा. कोर्ट तो आदेश ही कर सकता है, दूसरी जांच करा सकता है किन्तु एक बार एक डाक्टर के द्वारा घोषित रिपोर्ट को भला कौन बदल कर अपनी ही बिरादरी को शर्मशार करेगा.

कैर कुछ भी हो शीलू के साथ तो अन्याय तो हुआ ही चाहे विधायक ने दुराचार किया हो या न किया हो. कोई न कोई तो वैसी अन्दुरुनी बात है ही, जिससे उसे जेल भेजना ही पड़ा.

एक बेचारी शीलू वैसे भी लाचारी की मारी थी, लाचारी में ही जियेगी और लाचारी में ही मारेगी. इस देश में न बांदा सही जहाँ जायेगी उसके साथ ऐसा ही कुछ न कुछ होता ही रहेगा. कानून के रखवाले ही कानून से खिलवाड़ कर उसकी बदनसीबी का मजाक तो उड़ाते ही रहेंगे.

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