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आप कुछ भी खरीदे देखेगे कुछ न कुछ मिलावट है. कुछ चीजे ऐसी है जिन्हें हम तो समझ ही नहीं सकते मिलावट है या नहीं, सरकारी विभाग भी बेचारे है उनकी तो कहने ही क्या? गलती उनकी भी नहीं सारा का सारा व्यवसाय ही बेईमानी में सिमटता जा रहा है. अभी हाल में 2 g स्पेक्ट्रुम घोटाले में भारत का जनधन नेता, अधिकारी व इन्ही उद्योगपतियों द्वारा लूट लिया गया. सामाजिक क्षेत्र में ही चले जाए तो संसथाये भी लगातार लूटकर अधिकारियो को देती है और सब कल्याण हो जाता है जनता के धन का. जब भावनाए ही नहीं है तो दान धर्म कैसा.
कभी भारत के राजा महाराजो के किस्से दान और धर्म कर्म में सुने देते थे आज राजा महाराजो यानि राज नेता और उच्च पदस्थ अधिकारी ही है देश की जनता के लिए मशीहा. इनकी गाथाये आज कल लेवल घोटाले यानि सरकारी लूट में ही प्रमुख है. सत्ता के करीब रह कर उद्योगों के शिखर पर पहुचने के लिए इन्ही नेताओ और अधिकारियो का उपयोग कर पंहुचा गया है. आज इन्ही तर्कों को बल देकर शिखर से होने के कारण इनकी सुरक्षा भी सरकार ही कराती है. यानि सरकार के कुछ भी लूट के लिए बांटा-बांटा नहीं है. इन्हें उद्योग के शिखर पर रहना है उन्हें राजनीती के शिखर पर, दोनों ही अपनी परस्थितियों के सहयोगी है. दोनों ही स्थितियों के लिए धन ही चाहिए. जिसका आपसी बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध देखने को मिलाता है.
जो खुद ही सरकारी धन या योजनाओ को लूट रहे है भला उन पर क्या फर्क पड़ेगा. फिर भी वारेन बफेट, बिल गेट्स और मेलिंडा गेट्स ने गुरुवार को यहाँ कहा की भारतीय उद्योगपतियों को अपनी कमाई का कुछ हिस्सा सामाजिक कार्यो और गरीबों के उत्थान के लिए अवश्य दान करना चाहिए।-भारत में अमीरों की कमी नहीं है। इसके बावजूद अभी भी गरीबों के लिए पैसा दान देने के मामले में उदासीनता झलकती है।
भारत में अमीरों की कमी नहीं है सभी के सभी किसी न किसी मेहनत से ही कुछ बने है पर है अमीरों की क़तर भला आप ही बताईये जहाँ का आम आदमी अपनी आमदनी को छिपा कर तरह तरह के कर बचाता हो भला उस देश के बड़े- बड़े उद्यमियों की स्थित क्या होगी. जो खुद ही जनता को देने वाले धन को चुराता हो वहां दान की क्या भूमिका हो सकती है. यानि जनता को ही देने वाले धन को चोरी कर अपनी स्थिति को मजबूत कर अमीर बने यह लोग भला कैसे दान कर सकते है. इनकी तो बुनियाद ही जनता के धन पर कड़ी है.
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