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लोग आज नहीं तो कल कहेगे ही, जो सच है उससे भागना कैसा? सच को छिपाना कैसा? दोषी का साथ देना भी तो दोषी होना ही है. यानि आज नहीं तो कल लोग कहेगे ही एक अन्ना था वह भी ऐसा निकल गया और उसके साथी भी लुटेरे ही थे. बनता तो बहुत बड़ा समाज सेवी था किन्तु साथ उनके वही लोग जुड़े थे, जो कभी अव्वल दर्जे के भ्रष्ट हुआ करते थे. यही अन्ना जी गलत हो गया था. आप ने भी बड़ी जोरदारी से इन भ्रष्टाचारी बाप-बेटो को अपने गिरोह में सामिल कर लिया. आखिर क्या मिलना था? ऐसी कुछ तो बात होगी ही जो आप ने इतने जोरदारी से खंडन कर बड़े ही ताव में बगैर कुछ सच जाने या बगैर जाने आपने न जाने क्या-क्या बक दिया. मर्यादाओ का भी ख्याल नहीं रक्खा.
अब जब आप अनशन पर बैठे तो आपका मकसद क्या था यह तो इस देश की जनता ही जान सकती है लेकिन में इतना जरूर कहूगा, आपके उस प्रदर्शन से जन हित कुछ भी नहीं था. आप को अपने लिए या फिर अपनो के लिए लोकपाल साझा समिति में जगह बनाना ही मुख्य मकसद था या कुछ और. यह तो इस देश की जनता ने नहीं समझा न. वह तो न समझ है उसे किसी तरफ तुम मोड़ सकते हो, जैसा चाहो बहला फुसला कर अपने लिए पद या कुछ भी ले सकते हो. लेकिन अगर आप अन्दर खाने से जरा सा भी गलत आया बेईमानी की नियत रखते है तो फिर आप जानिए वही होता जो आज आप की साझा समिति के लोगो पर हो रहा है.
जनता ने यह समझ लिया था कोई मशीहा मिल गया इस देश में लग रहे घुन को ख़त्म करने के लिए. लोगो ने यानि देश की भोली भाली जनता ने आप पर विश्वास किया था केवल भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए. आप ने क्या दिया जनता को जरा सोचिये. आप ने जनता को दिया जनता ने आप को कुछ दे दिया, कभी भी वख्त मिले तो बैठ कर सोचिये. लोगो ने तुम्हारे साथ जुड़कर क्या चाह था और क्या मिला? मरे समझ में केवल आप और आप के कुछ सहयोगियों को लोकपाल बिल बनाने की एतिहासिक साझा कमिटी में गद्दी मिलाने के अलावा जनता को तो कुछ भी नहीं मिला. इस पर भी आप के आये दिन आने वाले बयान किसी निम्न स्टार के राजनीतिक से कम नहीं थे या फिर देश के अखवार ही गलत कह रहे हो.
शांति भूषन व उसके लडके को लेकर पहले से ही गतिरोध था. तब आपको नहीं दिखा कुछ चाँद लोगो की समिति में इन दोनों बाप-बेटों का आखिर क्या काम. क्या देश में कोई दूसरा नहीं थ जो आप इन बाप बेटो में किसी एक को लाकर दूसरो को भी राय देने में शामिल कर लेते. यही बाप-बेटे ही देश में लोकपाल बिल बनाने बे सक्षम है और कोई कानूनविद या शिक्षाविद बचा ही नहीं. यह तो अन्ना तुम ही जानो जिस तरह से आप ने इन दोनों बाप-बेटो की नियुक्ति को वैध करार कर सरकार और सत्ताशीन पार्टी को भी आँखे दिखने में नहीं चुके. जरूर कुछ तो पर आपने बैमानी की. जनता को धोखा दिया और गुमराह किया. मैंने कहा न इस समय आप कुछ भी कर सकते है, मेरे खिलाफ ही कुछ करवा सकते है, यह भी जनता का ही पवार है आप का नहीं.
आप मंथन कीजिये और सोचिये आप उन राजनीतिको से भी गए है जिन्होंने इस देश को गढ़धे में डालने का काम किया है. आपको तो कमसे काम इस तरह के सरकार या शासन को भयभीत करने वाले बयानों से बचाना चाहिए था. गलत लोगो को बेनकाब कर अपनी साझा कमिटी की इज्जत और शान को बनाये रखना था. आप भी बहुत ही चतुर खिलाडी के भांति देश में घोटाले दर घोटाले करवानेवाली पार्टी के महासचिव यानि राहुल गाँधी की तारीफ कर केवल अपने ही मकसद को कामयाब करने की कोशिश की. जिस पार्टी की सरकार घोटालो में लिप्त हो उसके पार्टी सदस्यों की बड़ाई केवल इस लिए आप ने की केवल इन बाप-बेटों को बचने के लिए.
फिर बड़ी ही चतुराई से इनकी कमियों पर मिटटी डालते हुए आपने सोनिया गाँधी को धमकी भरा (मैंने देखा नहीं केवल मीडिया के द्वारा) पत्र लिख कर दिग्विजय सिंह पर नकेल दाना\लेन की कोशिश कर देश की जनता के विश्वाश के साथ महापाप किया.
जरा आप भी सोचिये अन्ना तुम भी…….
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