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“यह देश है वीर जवानों का” यानि कमजोरो का नहीं. भला हनुमान जैसे सेवको और भीम जैसे वीरो के देश में कमजोरो की क्या विसात? यानि यदि तुम कमजोर और इन्संवादी हो तो तुम्हारा यहाँ क्या काम. दुनिया का दस्तूर है जोरदार का ही सबकुछ होता है. कमजोर तो लचर होता है और साडी जिन्दगी तिल-तिल कर जीता है और जी रहा है. कल की ही तो बात है PAC की रिपोर्ट लीक हो गयी.
PAC की रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय ही मुख्य रूप से दोषी है और सारी की सारी गड़बड़िया पीएमओ से ही हुई है. पीएमओ के मुखिया यानि मनमोहन सिंह जी को कुछ अच्छा ही बता दिया गया था. यह कुछ ज्यादा ही अच्छा हो गया. और PAC की जब बैठक आहुति हुई तो सत्ता पक्ष के सदस्यों ने अपनी निष्ठां को ऊपर साबित कर उस कमिटी को ही नेस्ट नाबूद करने की कोशिश की गयी. वैसे भी भारत के वीर जवान संसद हो या विधायक सभी के सभी मौके पर चूकते नहीं है. इनके उदाहरानो से तो भारतीय विधायिका का इतिहास भरा पड़ा है.
रह गयी निष्ठां की तो शायद हनुमान जी से किसी भी भारतीय की निष्ठां कभी भी विस्वश्नीय नहीं रही होगी. लेकिन मई दावे के साथ कह सकता हूँ आज राजनीतिक हनूमान यानि पार्टी के कार्यकर्त्ता यानि चुने हुए पार्टी प्रतिनिधि उस पुराने जवाने के कहानी के हनुमान से कही ज्यादा ही वीर और धीर समझ में आते है. अपनी पार्टी और अपने देश के प्रधान मंत्री की बुरे कैसे बर्दास्त कर सकते है. यही वीर जवान ही तो देश में नियम और कानून की दुर्गत बनाये हुए है. मई कुछ ज्यादा ही इनकी बड़ाई में समय खर्च कर रहा हूँ तो आगे चलते है और देखते है—
PAC की बैठक तो तय ही थी और बैठक में हनुमानो के करतब के दिखने की संभावना भी थी. वो ठीक है वह जमाना नहीं रहा नहीं तो आज राम को कुछ कहने वाले जिन्दा भी नहीं रहते. खैर विरोध तो होना ही था और हुआ भी, लेकिन विपक्ष यानि सरकार के लोगो ने जाच को ख़ारिज कर दिया और कमिटी को बहुमत से हरा भी दिया. रिपोर्ट को एक तरफा और न जाने क्या क्या कहा गया. यहाँ तक सरकार के हनुमानो ने परंपरा को तोड़ कर पुनः से एक नै कमिटी की घोषणा कर दी और उसके बाकायदा अध्यक्ष के रूप में श्री सोज की भी घोषणा कर दी.
ऐ लोकपाल के वीरो, सितारों और देश के खेवनहारो, तुम तो लड़ने में भी अकक्षम हो, सधे हो, जनता की सुन लेते हो, अच्छाई देते हो और बुराई को पी लेते हो. लेकिन इन हनूमानो से तुम्हारा तो पला नहीं पड़ा होगा. इस लिए मई यह आर्गी कर रहा हूँ, सावधान किसी तरह का पंगा नहीं लेने का, नहीं तो अन्ना जी, जो तुमसे अभी तक घबराया है वह तुम्हारी टांग तो देने का. यह कुर्सी ही नहीं मेज तक को लोगो के सर में मार कर जहन्नुम में पहुचने का भी काम करते है. टांग – वांग तो बड़ी ही मामूली बात है. यहाँ पर कानून भी कोई खास महत्व नहीं रखता. यानि सरकार के ही तरह का काम करना या फिर तुम जानो. वैसे भी युमहरा तो सरकार के साथ सक्झौता तो है ही. हर चतुर सम्ज्सेवी यही करता है.
देखो आज तक इन राजनीतिज्ञों का कुछ बिगाड़ा तो नहीं है न, न जाने कितने अधिकारी आज तक खुले आम डकैती दाल चैन से जी रहे है और आम जनता का खून पी रहे है. जरा इनको भी देखे रहना, इनके लिए गरीबो का ही धन सबकुछ है नहीं कोई इनका भाई और न ही कोई बहना.
अब देखना है तुम्हारे लोकपाल बिल का क्या होता है. देखो इसे पास- वास तो होना नहीं यही सोचा होगा आप ने तो भूल जाओ, यह पास होगा लेकिन बिना दात का और बिना सींग का. इससे किसी का नुक्सान भी नहीं होगा और तगमा भी लग जायेगा. अगर आपने भी कुछ इधर- उधर करने की सोची तो समझो हो गयी आप की छुट्टी.
आप लोग PAC से सीख ले और अपनी खैर मनाये.
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