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बड़ी अदालत का ऐसा हस्तक्षेप और सरकार की बेबसी?

BEBASI
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पहली बार नहीं पिछले कई बार से अदालतों को इन सरकारों को धिक्कारना पड़ा है और धकियाना पड़ा है. तभी कुछ हुआ नहीं तो कोई कुछ भी करने को तैयार नहीं है. सवाल यह उठता है आखिर यह सरकारे क्यों इतनी मजबूर है की कोई भी अच्छा कदम नहीं उठा पा रही है. आज भी कल ब्व्ही ऐसा ही कुछ लगता है चलता ही रहेगा. आखिर ऐसी कुछ तो मजबूरी होगी ही जिससे बड़ी कोर्ट को हस्तक्षेप करते हुए काले धन का मामला अपने ही हाथो में लेना पड़ा.

इस मामले को अभी भी कांग्रेस या कोई भी राजनीतिक दल गंभीरता से लेने को तैयार ही नहीं. अपनी कमजोरी को कांग्रेस भी स्वीकार करने को तैयार भी नहीं. काफी अरसे से चल रहे मामले को आगे बढ़ाते हुए जब मामला आगे नहीं बढ़ा तो इस बड़ी कोर्ट को लेने की मजबूरी बनी. सवाल उठता है आखिर ऐसी कौन सी समस्या थी या है, जिसके चलते काले धन की जांच को मौजूदा सरकार आगे नहीं बढ़ा पायी.

सोनिया गाँधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष है और जिम्मेदारी बनती थी कुछ तो ऐसा अपनी पार्टी की सरकार को निर्देश देती जिससे कला धन के मामले की खुलाशा होता और राष्ट्र की सम्पदा की रक्षा होती और जो भी धन बहार गया था वह लौट कर वापस आ जाता. विकाश के ही नहीं विश्व में देश की स्थिति भी मजबूत होती. यह धन निश्चय ही गैर मेहनत और राष्ट्र का धन था. इसके पकड़ने की कोशिश एक बार जनता की निगाहों में कांग्रेस की वफादारी साबित कर सकती थी. सवाल उठता है कही यह काले धन के मालिक कांग्रेस के धन्स्रोत तो नहीं है. पार्टी के फंड में कुछ देकर देश की जनता का धन लूट कर ले जाने वाले कांग्रेसी तो नहीं है. पूर्व में भी कांग्रेस का ही केंद्र में सत्ता कुछ वर्षो को छोड़कर रही है जिससे यह तो सही है यह काले धन वाले कही न कही से कांग्रेस के रिश्ते में कुछ तो है ही. इसी लिए सोनिया भी कुछ विशेष निर्णय नहीं ले पायी.

मनमोहन को अब तो अपने को एक अच्छा या इमानदार नेता नहीं कहा जाना चाहिए. जो व्यक्ति जनता के धन और विकास की रास्ता नहीं अख्तियार कर सकता वह कैसे एक अच्छा शाशक हो सकता है. हा वफादार जरूर हो सकता है. पार्टी का , उन लोगो का जिनका धन बहार है, काले लोगो का, देश की जनता की गाढी कमाई के लुटेरो का, सोनिया का या ऐसे ही कुछ चाँद लोगो का. मनमोहन को तो तत्काल कोर्ट का निर्णय आने पर ही अपना इस्तीफ़ा प्रस्तुत कर एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए था. भ्रष्ट न होने से नहीं, भ्रष्टाचारियो का साथ देने में भी बराबर का दोष सामने आ रहा है. और अब भी इमानदारी का तगमा लगाये लुटेरो के प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता में काबिज होना कोई अच्छा व्यक्ति नहीं समझा जा सकता है.

कुछ लोगो की सरकारों को जन- जन की सरकार बनाने की जरूरत है. इनकी हर काम की जवाबदेही तय की ही जानी चाहिए. कांग्रेस तो वैसे भी भ्रष्टाचार की जननी रही है और है. लगभग सभी के सभी घोटाले इसी शासन में हुए और किये जा रहे है. ये वही लोग है जो एक लम्बे समय से इससे जुड़े हुए है और सत्ता का चौमुखी शोसन कर रहे है.

मै तो समझाता हूँ अब कोर्ट को और हस्तक्षेप कर स्पष्ट निर्देश दे देना चाहिए, सुधारो नहीं तो जनता की कमेटिया बना कर मानिटरिंग करा दी जाएगी. बा यह जरूरी भी हो रहा है. वही लुटेरे अधिकारी/ अपराधी अपनी खुद ही जांच करते या मातहत से करावा खुद को बेक़सूर करार दे पुनः लूटने लगते है. अब तो कानून होने की बात नहीं कानून है जनता यह जाने यह बात होनी ही चाहिए.

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