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हर देश में आदमी मरता है- वाह री कांग्रेस!

BEBASI
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कांग्रेस हो या मनमोहन इन सभी को केवल सत्ता से ही मतलब है और आम आदमी कैसे जी रहा है और मर रहा है कोई भी मतलब नहीं है. है भी तो वोट से. अभी हाल में ही मनमोहन सरकार का एक नया बिस्तार हुआ और नए रेल मंत्री बने दिनेश त्रिवेदी ने यह कह कर “दुर्घटनाये तो हर देश में होती है.”(जोश18 अब फेसबुक पर
13 जुलाई 2011) . मतलब बिलकुल साफ़ सा दिख रहा है की न तो सरकार न ही इसके नुमायिंदे ही जनता के प्रति जिम्मेदार है और न ही देश के प्रति. आखिर ऐसा कहनेवाला मंत्री देश में कितनी जिम्मेदारी उठाएगा यह तो आनेवाला समय ही बताएगा.

यही रेल मंत्री त्रिवेदी जी, दुर्घटना में जब कानपूर/फतेहपुर पहुचे तो इन्होने दुर्घटना की परिभाषा ही निकाल कर बड़े ही सहज भाव से कह दिया, दुर्घटनाये तो हर देश में होती है. यानि की यहाँ की दुर्घटना से कोई भी बड़ा असर कांग्रेस या सरकार पर नहीं पड़ा. जब असर ही नहीं पड़ा तो रेल में दुर्घटना रोकने की नई तैयारियों की तो कोई भी बात नहीं है. आखिर सरकार की क्या जिम्मेदारी बनती है. ये मंत्री क्यों है और इनका क्या काम है? अब इस विषय में भी सोचा जाना चाहिए. ये वैसे भी कांग्रेस सरकार भ्रष्टाचार के अलावा कोई भी बात सुनाने और करने को तैयार नहीं है.

हर देश में और हर आदमी को मरना पड़ता है और मरता है. जेट भी गिरते है. कारे भी लड़ती है. यानि यह सब ठीक है, कुछ भी करने की जरूरत नहीं है. ऐसा लगता है जैसे यह रूटीन घटना है और आगे भी होती रहेगी. आदमी यदि जन्मा है तो मरता रहेगा. मै तो रेल मंत्री को सुक्रिया अदा कर रहा हूँ, जो उन्होंने आम आदमी को समझा दिया सारे विश्व में घटनाये होती है और होती रहेगी तो भला हिन्दुस्तान कैसे अलग रह सकता है. जब सारे जहाँ का आदमी दुर्घटना में मर सकता है तो भला भारत में क्यों नहीं मर सकता.

जब की आवश्यकता थी एक जिम्मेदार के नाते रेल की दुर्घटनाओ की जिम्मेदारी को लेकर यह प्रयाश किया जाना चाहिए था की दोबारा दुघटना न हो, चलो नहीं रोक सकते तो कमसे कम दुघतानाओ को कम तो जरूर कर सकते है. लेकिन जहाँ सवेदना ही नहीं बची है, केवल सत्ता की लोलुपता ही है वह पर सभी मानवीय पहलू ही मर जाया करते है. मुझे तो नए रेल मंत्री के बयां से यही लगा जैसे देश “भगवान् भरोसे चल रहा है वैसे ही रेल जैसी चल रही थी वैसे ही चलती रहेगी.”

रेलमंत्री ने समझा दिया मानवीय सवेदना क्या होती है और समझा भी दिया—
“हर देश में आदमी मरता है तो इस देश में भी आदमी मरेगा ही.”

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