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यह देश भी अजीबो गरीब है. यहाँ पर नियम कायदा और कानून भी आदमी को देख ही लागू होता है और उसमे कुछ किया जाता है तो पहले आदमी को देखा जाता है यह किस स्तर का है और कही भारी तो नहीं पड़ेगा और यह कुछ कानून का बिगाड़ तो नहीं पायेगा. तभी तो कानून अपना काम करता है. नहीं तो आप खुले आम सड़क पर लोगो को मार कर घूमते रहिये कोई कुछ भी करने वाला नहीं कोई भी पुलिस पकड़ने वाली नहीं. यह किसी गो की बात नहीं देश के प्रमुख और बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी में घटी घटना के सम्बन्ध में ही कुछ जब नए तथ्य सामने आये तो लगाने लगा यहाँ पर आदमी- आदमी के अनुसार से कानून भी काम करता है.
इश देश में भ्रष्टाचार तो वैसे भी चरम पर है और इसकी कोई भी सीमा है ही नहीं. केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार हर स्तर पर केवल रुपये पर ही काम चल रहा है. लोग रुपये के लिए ही नहीं अपनी झूठी महत्वाकांक्षा के चलते भी कानून को ठेंगा दिखाते चले आ रहे है. देश में सुधर के लिए भ्रष्टाचारी केंद्र सरकार ने एक स्वस्थ्य सुधर के लिए योजना सुरु की तो उसमे लूट की वाहवाही लूटने की होड़ लग गयी. हर अफसर और नेता लूटने के फिराक में लग गया.
ऐसी ही योजना को लूटने के लिए स्वास्थ्य महकमा के मुखिया और उसके पिछलग्गू अफसरों ने जब विभाग में लूटना सुरु किया तो कुछ मुख्य पदों पर बैठे अधिकारियो को नागवार लगा तो उनसे दवाब में ही कुछ न कुछ करा भ्रष्टाचार में भाग लेने को कहा गया. जब नहीं तैयार हुए होगे तो बिलकुल फ़िल्मी अंदाज में मरवा दिया गया होगा.
यही है बहुत ही चर्चित और जघन्य अपराध और नेताओ और सरकार का गठजोड़. लखनऊ के CMO ‘s की हत्याओ का सिलसिला. गलत तो उत्तर प्रदेश की पूरी की पूरी सरकार ही है. लेकिन हत्या जैसे अपराध को कर पैसा बनाने की प्रक्रिया सर्कार के स्तर पर होगी वह बहुत ही निंदनीय है. तीन- तीन CMO “S की हायता दिल और दिमाग दहला देने वाली है. यह लोग तो रुपये के लिए कितनो की ही हत्या करावा सकते है.
इसी केस में वजीरगंज कोतवाली में सात अप्रैल को पूर्व सीएमओ डॉ. एके शुक्ला, डिप्टी सीएमओ योगेंद्र सिंह सचान व स्वास्थ्य विभाग के अन्य कर्मचारियों के विरुद्ध वित्तीय अनियमितता की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। पुलिस ने डॉ. सचान समेत अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था लेकिन डॉ. शुक्ला के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की थी।
सवाल उठता है आखिर क्यों ऐसा किया गया. एक अपराधी को पकड़ा गया और दूसरे अपराधी को छोड़ दिया गया. ऐसा किस कानून में लिखा है. आदमी- आदमी को देख कर कानून चलता है या फिर यह व्यक्ति भी मुख्य करता-धरता लोगो से मिला हुआ है और सूत्रधार भी है. यह किसी नेता का मुख्य रिश्तेदार हो सकता है और इसी धमक में इसको नहीं गिरफ्तार किता गया हो. जिस जांच अधिकारी ने यह कार्यवाही की उसके किसी न किसी उच्छ या मुख्य अपराधी से सम्बन्ध अवश्य हो सकते है. जब सरकार की पुलिस उस आदमी को छू नहीं सकी जो सचान के साथ बराबर का दोषी था.
तो यदि आप किसी भी सरकार के नुमायिंदे के रिश्तेदार या नजदीकी है तो एक ही मुकदमे में साधारण या राजनीतिक पहुच्वाला व्यक्ति आप के पास तक पुलिस को फटकने ही नहीं देगा. देखो तो कानून, आखिर देखो न अब कानून, यदि अदालत इस सरकार को न फटकारती तो सचान के हत्या में सामिल यह सरकार और सरकारी मशीनरी सचान की हत्या के साथ इस मुकदमे को सचान के ऊपर ही लाद-फांद कर मुक़दमा ख़त्म कर दिया जाता. देखो कानून.
जब तक यह बिसंगातिया रहेगी तब तक इस देश में कानून को भिन्न- भिन्न तरीके से इस्तेमाल कर अन्याय होता रहेगा और कानून की धज्जिय उड़ाती रहेगी. इस मामले में भी चाहिए था की जिस भी व्यक्ति ने जाच की है उसे भी तत्काल बर्खास्त कर चलता कर देना चाहिए. और नमूना पेश किया जाना चाहिए की दुबारा लोग कानून का दुरूपयोग न करे.
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