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पतवाड़ी गांव की 589 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण रद्द किए जाने के फैसले को बिल्डरों ने बड़ा झटका माना है। शाहबेरी से अलग परिस्थितियों के बावजूद हाई कोर्ट द्वारा पतवाड़ी का अधिग्रहण रद्द किए जाने के बाद बिल्डर अब सरेंडर की स्थिति में आ चुके हैं। अन्य गांवों के मामले में भी हाई कोर्ट में आगे होने वाली सुनवाई में भी इसी तरह के निर्णय आने की उम्मीद के चलते अब बिल्डर बैक फुट पर आ गए हैं। अथॉरिटी और सरकार से बिल्डरों और आम आदमी को होने वाले नुकसान की भरपाई करने को कहा है। उनके अनुसार देश में सरकार की मध्यस्थता से हुए अधिग्रहण इतने बडे़ पैमाने पर अन्य कहीं राज्य में रद्द नहीं हुए हैं।
यानि की सरकारी खेल में जमीन को नोचनेवाले व पैसा बनाने वाले अब पसोपेश में तो फसे. लेकिन हुआ कुछ भी नहीं. किसी भी जमीन को किसी दूसरे विकास के लिए सरकार द्वारा अधिग्रहित की गयी वह अभी तक पूरा नहीं किया गया. यानि किसी प्रकार के तरीके से सरकारी पहुच के चलते सस्ती दरो पर लूट ली गयी. इसामे सम्मिलित रहे अधिकारी व सरकारी तथा नेताओ की हिस्सेदारी जरूर होगी या फिर किसी दूसरे नाम से इन्वेस्ट किया गया होगा.
बिलकुल साफ है जिस अधिकरी द्वारा अधिग्रहित जमीन को नवैयत बदली गयी जरूर कुछ तो लालच रहा होगा. ऐसे अधिकारियो का कुछ भी बिगड़ा नहीं और वे फ्री है. बिना किसी व्यक्तिगत हित के भला कोई भी अधिकारी ऐसा क्यों करता. जरूरी था की ऐसे अधिकारी की संपत्ति से लेकर उसाके पूर्व में किये गए कार्यो की जाच की गयी होती. निर्णय तभी पूरा होता जब किसानो की जमीन से खिलवाड़ करने वाले अधिकारी के साथ कलि संपत्ति वाले जेल के अनदार जाते. नहीं तो वे फिर कुछ न कुछ जनविरोधी काम करते ही राहेगे.
कोर्ट ने निर्णय तो ठीक ही दिया लेकिन बिना अपराधी को सजा दिए दिया गया निर्णय अधूरा ही.
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