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आज मै एक मरीजो के घर
यानि अस्पताल में खड़ा हूँ,
मेरा भारत और भारत के मिशन
महान है, इस बात पर अड़ा हूँ.
एक क़स्बा है, वह एक अस्पताल है,
गाँव से आनेवालों के साथ यहाँ के
डाक्टर का दलाल है.
समझ सकते है, इन गोनो के लोगो का
यही झोला छाप ही भगवान् है,
मरो तो इस्वर के आगे नहीं चलती किसी की,
यही दलील काम कराती है,
जब बिगड़े बात तो दलाल की चलती है.
बच गए तो जीना गिसट-गिसट
यही इन सर्जन का कमाल है.
सब कुछ जान कर डाक्टर को भगवान मान कर
बेचारा लायीं पे लगा है,
कुछ दिन तो और जी लेगे और
इसी लिए तो यहाँ पड़ा है.
आज मै एक मरीजो के घर
यानि अस्पताल में खड़ा हूँ,
मेरा भारत और भारत के मिशन
महान है, इस बात पर अड़ा हूँ.
है कुछ और, बताते कुछ और,
करते कुछ और, जताते कुछ और,
यही इनकी अदा है, जानते है एक
मजबूर मेरे दर पर खड़ा है,
खून-पसीने की कमाई है,
जोड़ी पाई-पाई है.
गाथ में बांधे, आस में, कुछ साथ में,
कुछ को साथ में,कुछ को हाथ में
जीवन पाने को लुटाने खड़ा है.
आज मै एक मरीजो के घर
यानि अस्पताल में खड़ा हूँ,
मेरा भारत और भारत के मिशन
महान है, इस बात पर अड़ा हूँ.
एक मिसन इस देश की सरकार ने चलाया है,
स्वास्थ्य रहे ठीक-ठाक यही विधान बनाया है.
जैसे कभी एकलव्य ने ने अपना अंगूठा गवाया था,
ठीक वैसा ही कुछ सरकार ने अंगूठा लगवाया है.
वादा किया है, ज्यादा दिन स्वास्थ्य हो जियोगे,
भला हो इन कम्पनिवालो का,
इनकी योजनाओ का, इनकी फितरतो का,
जब से आई यह योजना, मरीज तो कम
बीमा वालो ने, डाक्टरों न, दलालों ने,
अपना स्वास्थ्य चमकाया है.
एकलव्य की तरह फिर से एक नहीं
हजारो द्रोनाचार्यो ने बेचारे गरीबो
के अंगूठे को कटाया है, भुनाया है.
फिर भी उसे उम्मीद है, इलाज होगा
wah चंगा होगा और इसी अस्वाशन
को लिए अपने मन में तन सजोने को अड़ा है.
आज मै एक मरीजो के घर
यानि अस्पताल में खड़ा हूँ,
मेरा भारत और भारत के मिशन
महान है, इस बात पर अड़ा हूँ.
वह भी खड़ा है, मै भी खड़ा हूँ,
बेचैन है, दुःख से – दर्द से,
तसल्ली दे रहा है अपने को,
अपनों को, समझा रहा मन को- तन को
छिपा रहा है, पी रहा है, मजबूरी को,
दर्द को, आंसू को, बड़ी ही इत्मीनान से
निहार- निहार मजबूत हो गया है,
भूल कर सब, शून्य की हताशा में
आंसू भी होता है भूला खड़ा है,
वह भी खड़ा है, मै भी खड़ा हूँ.
आज मै एक मरीजो के घर
यानि अस्पताल में खड़ा हूँ,
मेरा भारत और भारत के मिशन
महान है, इस बात पर अड़ा हूँ.
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