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टूट पड़ा है रिश्तो का संसार,
मिटा दिया तुम सबने प्रकृति का उपहार,
इन्सान से इन्सान का प्यार.
खूब बढ़ो, खूब चलो नए सफ़र,
मत भूलो इन जन्मदाताओ को,
हर नए वख्त मुबारक हो तुम्हे,
गाढ़ी हुई शिलाओ को,
खूब लान्घो तुम पर्वत
ऊचे से ऊचे शिखर तुम्हारे,
ऊचे- ऊचे सपने है,
मत भूलो हम सब अपने है, अपने है.
कितना ही ऊपर चढ़ जाओ,
हमारा कम नहीं होगा अधिकार,
टूट पड़ा है रिश्तो का संसार,
मिटा दिया तुम सबने प्रकृति का उपहार,
इन्सान से इन्सान का प्यार.
कुछ पल को स्वर्णिम समझ
खो गया सपनों की दुनिया में,
नहीं याद रहा अब वो गलिया
वो मुंडे, वो मुंडिया, वो पगदंदिया,
खुद को खपा-खपा, कमा-कमा,
जर्जर हुई या वो तुम सी ही कयाये,
भूल गया अब तो लेना हाल-चाल,
अपनापन तो है ही नहीं,
अपनो का भी किया तिरस्कार.
टूट पड़ा है रिश्तो का संसार,
मिटा दिया तुम सबने प्रकृति का उपहार,
इन्सान से इन्सान का प्यार.
मत भूले तुझे भी वही रास्ता चलनी है,
इंसानी फिदरत है, या कुदरत का फरमान,
मुझ जैसा ही हो जायेगा, ऐ खुदगर्ज इंसान,
तुझसे आगे तेरे अंश को जाना है,
तेरी ही करनी को आगे बढ़ाना है,
जैसा तुमने किया वैसा तुम्हे भी पाना है,
क्योकि तुम्हे उसे तो अपने जैसा ही बनाना है.
नयी से नयी विधा पढाना और सिखाना,
पर प्यार न भुलाना, भुला देना तिरस्कार,
टूट पड़ा है रिश्तो का संसार,
मिटा दिया तुम सबने प्रकृति का उपहार,
इन्सान से इन्सान का प्यार.
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