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आंसू बह जाते हैं,
जब वो बाते मानस पटल दोहराता है.
जीवन में जीवन ही संकट बन आता है.
एक इन्सान का घायल शरीर
मांग रहा था तहरीर,
खून की धार लगी थी,
अँधेरा था आसमान पर,
मिट रहा था इंसानी रिश्ता,
चढ़ रहा था एक कलंक.
तड़प – तड़प मर रहा था,
इंसान, इंसान को देख बिचक रहा था,
इंसानियत से जयादा,
पुलिसिया भरी थे.
कौन पड़े पचड़े में, ऐसे तो
तमाम मर जाते है.
आंसू बह जाते हैं,
जब वो बाते मानस पटल दोहराता है.
जीवन में जीवन ही संकट बन आता है.
कोई दिलवर ने कुछ सहस दिखाया,
पुलिस को खबर की, paas न आया,
पुलिस ने भी लाद-फाद झट से
अस्पताल पहुच अपना काम निपटाया,
अस्पताल ने की खानापूर्ति,
रिफर के नाम पर बड़े अस्पताल पर टरकाया,
मर गयी इंसानियत, रातभर कोई भी,
झाकने न आया, देखन न आया,
वह भी मर गया, ऐसे तो राज आते है,
यही नहीं तमाम मर जाते है.
आंसू बह जाते हैं,
जब वो बाते मानस पटल दोहराता है.
जीवन में जीवन ही संकट बन आता है.
अब सोचने को बचा ही क्या,
अब रोने को बचा ही क्या,
अब इंसानियत ढोने को क्या,
कोई इंसान ही नहीं बचे है,
हिम्मत कीजिये, सड़क चलते हुए
कही और न मरिये,
लोग तुम्हे भी इसी रस्ते से
गुजार देगे, जैसे हर किसी को
एक-दूसरे पर टालते हुए,
इंसानियत को खा जाते हो,
जब तुम कही फसोगे, तो
ऐसे ही लोग नजर फेर जाते है.
आंसू बह जाते हैं,
जब वो बाते मानस पटल दोहराता है.
जीवन में जीवन ही संकट बन आता है.
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