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अभी हाल में अमेरिका ने भारत के साथ मिलकर सनुदरी क्षेत्र में सहोग करने की सहमती जताई है. पेंटागन ने समुद्री डाकुओ/आतंकियों से निपटने के लिए भारत के समुद्री क्षेत्र में रह कर साथ-साथ सहयोग कर सुरक्षा क्षेत्र में कार्य करने की इच्छा को आधार बता पांच वर्षो का साझा अभियान चलाना चाहता है. अमेरिका की नजर में ही नहीं यह तो पूरा विश्व जनता है इसी की संतान लश्कर-ए- तैयबा जैसी आतंकी गतिविदियो वाले संघटन की लिस्ट में भारत का विरोध प्रथम स्थान में है. भारत में अस्थिरता फलाना व तवाही मचाना वाकई पहला लक्ष्य है. यह सफी है और ऐसा हो भी रहा है.
जिस प्रकार से चीन की तरफ पकिस्तान का झुकाव हो रहा है उससे तो यहो साबित हो रहा है, अब अमेरिका को पकिस्तान से अपने को हटाना पड़े. यदि हटाना पड़ा तो फिर कहा? यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है और सुरक्षित जगह की तलाश अमेरिका ने प्रारंभ कर दी. इसी कड़ी में देखे तो समुद्री देख-रेख के आधार को लेकर कही अमेरिका भारत के रस्ते अब इस क्षेत्र में अपना वर्चश्व कायम तो नहीं रखना चाहता है. अमेरिका जनता है पकिस्तान मुस्लिमो से समबन्धित मामलों में सर्वाधिक उपयुक्त था और है भी. सभी द्रष्टि से. काफी अच्छा सहयोग ISI ने किया. अमेरिकी दें ही थी तालिबान और दूसरे संघटन. यह सब अमेरिकी सहयोग से ही पाले और बड़े. बाकायदा ISI ने इन सभी को पाला- पोषा और बड़ा किया. लेकिन वही हाल हुआ जब अब्दा हो गया तो जैसे कोई बिगडैल बच्छा बात नहीं मनाता वैसे ही सभी आतंकी संघटनो ने भी बाते मानना बंद कर दिया. और अपनी दिशा और कार्य क्षेत्र खुद ही निर्धारित करना सुरु कर दिया तो दिक्कते आई. यहाँ तक नफ़रत बढ़ी की अमेरिका को खुद ही तालिबानी आक्रमण को झेलना पड़ा. तब अमेरिका ने काफी हद तक ISI को सबको नियंत्रित करने को कहा. लेकिन अब तो सबकुछ हाथ से निकल चूका था. यहाँ तक अब हरपाकिस्तानी के दिल में अमेरिकी नफ़रत को साफ देखा जा सकता है. कुछ दिन से जब पकिस्तान अब मानाने को तैयार नहीं दिख रहा और बेबाकी से जवाब भी दे डाला तो अब अमेरिका को कुछ दिख नहीं रहा. एशिया के इस क्षेत्र में रहना भी बहुत ही आवश्यक भी है. यह सामरिक महत्व की प्रमुख जगह बन गयी है.
अभी तक समुद्री लुटेरो ने बहुत से जहाजो को लूटा और खसोटा तो अमेरिका ने कभी भी नहीं कहा था आपस में मिलकर कुछ ऐसा किया जाये जिससे भारतीय जहाजो के साथ- साथ अन्य देशो को भी समुद्री मार्ग पर दिक्कतों का सामना न करना पड़े. आज जब आवश्यकता पड़ी तो अमेरिका हर तरफ से सच समझ कर ही चाल चलता है. अब जब आवश्यकता पड़ी तो भारत नजर आया.
वैसे इस समय अमेरिकी ऑफर भारतीय हित की बात करे तो ठीक भी है. चीन द्वारा बढया जा रहा दाब भी अमेरिकी हित को साधने को मौका भी देगा. पकिस्तान में भारतीय सीमा पर और दूसरी जगहों पर भारतीय सीमा चीन द्वारा सेना का जमा होना भी इस समय भारत पर दाब बना रहा है. अमेरिकी निगाहे, जब भी कही टिकती है तो केवल स्वहित के लिए ही टिकती है. दिक्कत भी तो यही है और थी. पकिस्तान में था तब भी केवल भारत को बहकाने के लिए ही तो इन आतंकी समूहों के इस्तेमाल के लिए तैयार गया था. हथियार की होड़ लगा कर उन्हें बेचने की जुगाड़ भी की गयी थी. कश्मीर के बहाने न जाने कितने दिनों तक अमेरिका खेल भारत के साथ खेलता रहा. अब देखो जब दाल नहीं गल रही तो भारत के साथ खेल खेलना चाहता है आतंकवाद के नाम पर.
अब समय है भारत का. अमेरिकी कदम का दोहन करे और स्वनिर्माण पर ध्यान दे. अमेरिका का इस्तेमाल करे चीन पर दवाब बनाने के लिए. चीन के खिलाफ कूटनीतिक दवाब बनाना यह अमेरिका ही भी मजबूरी है. बस जरूरत तो यहो है सचाने की. समझाने की, अब बात स्वहित की न हो बल्कि सर्व हित की बात हो तो ठीक है. नहीं तो अब समय है भारत को अपने भरोसे को जगाने की.
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