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टीम अन्ना मुशीबत खुद या कोई और?

BEBASI
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भ्रष्टाचार के विरोध और रोकथाम को बनाये जा रहे लोकपाल कानून को बनाने और अपनी बात मनवाने को लेकर एक अकेले व्यक्ति अन्ना जी की लडाई के कारण कुछ लोग और जुड़ गए कारवां बनाने के लिए. यह तो अच्छी बात हुई. एक टीम बनी जो अन्ना टीम कहलाई. इसके जो भी सदस्य थे साफ-सुथरे छवि के ऐसा सोच कर जोड़ा गया. खुद ही लोग आये और कारवां बना तो बनता गया. यह सभी लोग जानते तो थे ही अन्ना ने महाराष्ट्र सरकार को कई बार झुका कर साफ- सुथरे तरीके से काम करने के लिए अच्छा संघर्ष किया और कराया था. इन अन्ना महाशय में वही खूबिया मौजूद है जो कभी लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल में हुआ कराती थी. अन्ना को तो सरकारी घुड़की ही नहीं जेल भी नहीं डरा सकी. यहाँ की राजनीतिक लोगो से लोग भाग रहे है वही अन्ना के अभियान को सफल बनाने के लिए अभूतपूर्व जन समर्थन आया.

लोकपाल को अच्छा रूप दिए जाने के लिए एक टीम बना कर संशोधन किया जाना तय कर दिया गया. कुछ लोग भी अन्ना के साथ सामिल हो किये और कारवां बन गया. इसी करवा को चलने के लिए कोर कमेटी यानि कुछ लोग जो समय जनता के कार्यो को दे सके, उन्हें बनाया गया. एक अभियान चला तो ऐसा लगा जैसे जैसे यह जनता का कार्यक्रम है और जनता के लिए ही चल रहा था. जनता ने खूब आगे बढाया भी और खुल कर चंदा भी दिया. आखिर जनता भी जानती है कोई भी अभियान बगैर पैसे के नहीं चलता है. यह उसी का कार्यक्रम था और उसी ने पैसे दे दिए. आखिर सरकार झुकी, झुकनी भी थी, क्योकि चोर चोर ही होता है उसमे जरा भी दम नहीं होती. फिर तो यह जनता के चोर है. सामाजिक चोर है, इनकी पोलपट्टी खुल रही है तो इन्हें बुरा तो लगना ही था. और लगा भी. मजबूरी में लोकपाल विधेयक के लिए हां तो की लेकिन इनकी नियत अब भी काली ही है. यह इसमे भी कुछ खेल करना चाहते है.

किसी भी अभियान को भटकने और समाप्त करने के कुछ तरीके होते है. आप कुछ कर रहे हो आपका ध्यान कुछ समय के लिए बटाया जाये तो जो करने जा रहे थे उससे बिलकुल ही बिलग हो जायेगे और फिर से वही कडिया जुड़ना भी बहुत कठिन है. यही कुछ हाल कांग्रेस का भी है. यह तो पुरानी भ्रष्टाचारी पार्टी है फर्क इतना है उस समय हमारे देश में इतनी पारदर्शिता नहीं थी. और इन कांग्रेसियों ने जम कर देश को लूटा. आज जब सत्ता में रहते हजारो करोर के घोटाले सामने है तो फिर भी बेशर्मो की तरह सत्ता में जमे हुए है.

खैर जिसे रोकना है उसे तो लाभ सरकार से मिल रहा है. सरकार और कांग्रेस की किरकिरी हो रही है. अन्ना के साथ कुछ और लोग भी जुड़े थे वह सरकारी चोरी में हिस्सेदार या शामिल है या फिर सरकारी पैसा का उपयोग कर रहे है तो उन्हें सरकारी घुड़की या लाभ के लिए अन्ना टीम से जुदा होने की घोषण की है. यह वही है जो राष्ट्रिय स्तर के गैर सरकारी संस्थानों को संचालित कर रहे है. कुछ सरकारी कार्यवाही से बच कर सरकारी प्रोजेक्टों का सञ्चालन करना चाहते है वह अन्ना टीम को छोड़ रहे है. अन्ना को इससे विरक्त नहीं होना चाहिए या परेशां नहीं होना चाहिए. बल्कि यह तो बाद के खर-पतवार है उतराते तो है ही. — यह आतंरिक साप है, इनसे सावधान रहने की जरूरत है.

कांग्रेस का हमला तो होना ही था. उसके साथ सरकार भी जुड़ेगी. जितने भी सरकारी बाबू देश के उच्च स्तर का काम देखते है उनके पास तो अरबो रुपये की नामी और बेनामी धरोहरे है. वह तुरंत सरकार का रुख देख हरकत में आते है और अपनी कमाई को बचने के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने वालो को तंग करने की ही नहीं बल्कि जेल में डालने की व्यवस्था भी करते है. — तो इनसे घबराने की जरूरत नहीं. चोर में दान नहीं होता.

दिग्विजय सिंह कोई आदमी नहीं यह तो कांग्रेस का धुतूदा और सोनिया का मुख्य चमचा है. अपने नंबर बढ़ने के लिए उल- जलूल बकता रहता है. अनुभवी तो है ही. लेकिन उम्र के साथ कुछ खिसका हुआ भी है. इसका काम भी यही है कुछ भी कहो और चर्चा में रहो. यह अपने अनुभव के आधार पर कुछ को खरीद कर तो कुछ को धमाका कर या पुचकार कर अन्ना टीम को भटकाने की कोशिश लगातार कर रहा है. — अब लोग समझाने लगे है यह पागल है. लोग इसके बयानों पर ध्यान नहीं देते.

सबसे जरूरी बात है वह यह है की अन्ना टीम के लोगो को इन दिग्विजय सरीखे राजनीतिक लोगो से बिचलित न होकर उसे कोई भी जवाब न दे. खुद भी बोले तो अपने अभियान के सम्बन्ध में ही नापा- तुला बोले न की विश्व स्तर की राजनीती करने लग जाए, जैसे प्रशांत, नाजुक मुद्दों पर तो कोई बात ही न करे. उल- जलूल बाते न करे और समझे आप कोई सड़क छाप नहीं. यदि है भी तो यह छोड़े. सामूहिक जवाबदेही के लिए केवल एक आदमी जो पर्पक्व हो बात करे, या कोई मीडिया प्रभारी को नियुक्त करे. केवल एक आदमी ही सबकुछ नहीं कर सकता.

अभी तक अगर आप समझे तो अन्ना टीम ही खुद मुशीबत बनी खुद के लिए. है क्या कभी iatane ऊपर की शोध किसी के पास भी नहीं थी, जहाँ वे आज पहुच गए. तो समझ नहीं पाए एक NGO स्तर पर बात करना और बात होती है जब की देश के राष्ट्रया मुद्दों का सञ्चालन एक अलग बात होती है. यह कोई खला का घर नहीं जो चाह वह बक दिया. प्रशांत को ही लो, उसने तो देशद्रोही या पाकिस्तानी भाषा का प्रयोग कर दिया. वोट करौओगे तो देश के सभी मुस्लिम पकिस्तान को ही वोट करेगे. अभी नहीं देखा अफगानिस्तान की बात करने वाले भारत से करजई ने कहा- हमले की हालत में पकिस्तान का ही साथ देगा अफगानिस्तान. तो भला हम देश को एक नए अस्थिरता वाले बयान कैसे दे सकते है. और राजनीति करने लगे. चले थे करने कुछ और बकने लगे कुछ और. — होश के साथ बात करे! जोश में नहीं.

अपनी जो भी पिछली कारगुजारिया है उन्हें अभी तुरंत सही कर ले या फिर उन पर लोगो से पहले ही माफ़ी माग ले वरना समय आने पर फिर से फजीहत होगी. वह अच्छी बात नहीं. टीम के एक के आदमी खुद ही अन्ना के लिए भी परेशानी बन चूका है. अब agar टीम और इस अभियान को जिन्दा रखना है तो अपने आप को सुधारना ही होगा.

टीम अन्ना के सदस्य खुद ही टीम के लिए या फिर अन्ना के लिए मुशीबत न बने. उगली उठा रहे दिग्विजय सिंह के बारे में कुछ भी जवाब न दे. एक दिन स्वयं ही या कुत्ता भूकना बंद कर देगा और हाथी अपनी मस्त चाल चलता रहेगा. तुम्हे सफलता से कोई भी नहीं रोक सकेगा.

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