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यह तो अर्ध कालेश्वर नाग है,
काटना इसकी फिदरत है,
यह कटेगा तो जरूर,
कितना ही दूध पिला दो…
यह पीछे काला तो सामने से सफ़ेद,
तभी नाम पड़ा अर्ध कालेश्वर,
जहर उगलता है जब मौका पता है,
कभी फुफकार तो कभी डसने को करता है,
अपना सपेरा मनमोहन इसपर मरता है.
एक ही तो इस जाति का, अलबेला है यह
इसी लिए भाता है मनमोहन को
और बार-बार इसी को दुलराता है.
यही भेदभाव है किया है,
दूसरे नागो को भाव नहीं दिया है,
पता नहीं कैसे इसने मनमोहन के मन से
इतना गहरा नाता बना लिया.
यह तो अर्ध कालेश्वर नाग है,
काटना इसकी फिदरत है,
यह कटेगा तो जरूर,
कितना ही दूध पिला दो…
लोगो में भय है, कोई चिल्ला रहा है,
कोई बडबडा रहा है, तो कोई सचेत कर रहा है,
अरे मनमोहन यह क्या कर रहा है,
यह तुझे ही डसेगा,हमें भी नहीं बक्सेगा.
तुने क्यों इसे इतने अपने सीने में बिठा लिया,
केवल अपने को बचा, पूरे परिवार को
दो पर लगा दिया, सबको उसके लिए भुला दिया.
कभी आगे तो कभी पीछे कह न कही अपना
अड्डा बन लेता है और दहसत फैला देता है,
अरे मनमोहन तेरे सर को भी इसने अपना बना लिया,
तेरे पर भी फुफकार, लेकिन तुने भुला दिया,
यह तो अर्ध कालेश्वर नाग है,
काटना इसकी फिदरत है,
यह कटेगा तो जरूर,
कितना ही दूध पिला दो…
तेरे घर के लोग भागे- भागे फिरे, अभागे बन,
इसने इतनी दहसत को अंजाम दिया.
न जाने कितनो को मारा और मरवाया है,
घर की घटी को लुट्वाया है,
अमन- चीन को आग लगाया है,
दहसत गर्दी इतनी, हर कोई घबराया है,
घर के सदस्य काप रहे, दूध रहे ठिकाना,
जिससे ऐसे मनमोहन के घर
न आबा पड़े दोबारा.
पर तू तो मस्त है, लोगो से कह रहा
हर कोई भयभीत ब्यर्थ है,
मनमोहन तुम भयभीत हो
या झूठी गडित लगाये बैठे हो,
जिसे कहना था आतंकियों का सरगना
उसे तुने शांति का पुजारी कह दिया.
यह तो अर्ध कालेश्वर नाग है,
काटना इसकी फिदरत है,
यह कटेगा तो जरूर,
कितना ही दूध पिला दो…
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