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शरद पवार को थप्पड़ का औचित्य ?

BEBASI
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दिल्ली में एनडीएमसी सभागार में आयोजित ‘ श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य समारोह ‘ में शिरकत करने पहुंचे शरद पवार संबोधन कर वापस लौट रहे थे तभी हरविंदर सिंह नाम के युवक ने उन्हें थप्पड़ मार दिया। और पुलिस हिरासत में जाने के बाद भी बडबडाता और गलिय देता रहा. आखिर उसे बहुत बड़ा सदमा था महगाई से या …. यह व्यक्ति पेशे से ट्रांसपोर्टर है. यानि कमाई भी कर रहा है. आखिर कारन क्या था, वाकई महगाई ही मुख्य समस्या उस युवक के लिए थी या कुछ और. इतने बड़े देश में वाकई महगाई का असर केवल उसी पर पड़ रहा था. पिछले दिनों जूते का एक अच्छा सा फैशन चला था. लोगो को तुरंत पल भर में अच्छी प्रसिद्धी के मौका मिल जाता है. लोग जानते है की हमारा भी नाम हो जायेगा. फिर तो जूते का अच्छा सा चलन बन गया. अपने देश में भी जूते नेताओ के ऊपर फेके जा चुके है, लेकिन वे इतने हिट नहीं हुए. इसी कड़ी में अब हरविंदर सिंह के द्वारा जूते की जगह थप्पड़ का प्रयोग कुछ भिन्नता प्रकट कर रहा है.

हरविंदर ट्रांसपोर्टर है, यानि कमा- खा रहा है, तो किस प्रकार की महगाई ने उसे झकझोर दिया, जो यह जानते हुए भी की जेल जाना पद सकता है और शरद पवार को थप्पड़ मार जोखिम लिया. उसके महगाई या कुछ समश्यो को तब कहते जब वह बेरोजगार हो महगाई का सामना करता. एक ट्रांसपोर्टर तो जरूर इतना कम रहा होगा, जिससे उसका परिवार अच्छे हाल में चल रहा हो. फिर तो खर्च करने की कोई भी सीमा ही नहीं. अगर वास्तव में महगाई की दश और दिशा देखना है तो वह देखे जहाँ रोजगार न हो और गरीबी हो. खैर इन हरविंदर महोदय को महगाई तमाम तरह से प्रताड़ित कर रही थी या फिर फेम के लिए एक हथकंडा भी है. बैरहाल सूत्रों के अनुसार हरविंदर अपने को अन्ना का समर्थक मनाता है और अपने पड़ोसियों से वास्ता- गरज नहीं रखता और पड़ोस के लोग उसके सनकी होने का भी दावा करते है. इसी ख्याल से अगर विचार किया जाये तो महगाई से हरविंदर का उतना ही वास्ता है जितना आम आदमी का. फिर केवल हरविंदर को महगाई इअतनी कैसे उत्तेजित कर सकती है? जरूर कुछ और ख्याल हरविंदर के जेहन में आया होगा. व हरविंदर के नजरिये से सही होगा.

किसी भी समस्या के लिए जब भी संघर्ष होता है तो एक अजीब तरह की उसमे गर्मी होती है, जो केवल हरविंदर जैसे युवको को ही नहीं सब को महसूस होती है. और उस संघर्ष का कारवां अपने आप भी बन जाता है. अभी हाल में सभी ने अन्न जी के आन्दोलन में झलक भी देखि. इस आन्दोलन को उन लोगो ने ज्यादा हवा दी जो भ्रष्टाचार में जन्मजात डूबे है और थे. जो रोज कमाते खाते है वह भ्रष्टाचारी नहीं हो सकते. वह प्रदर्शन करने की हिम्मत ही नहीं जूता पाते या जूता सकते- कारन उस दिन की रोटी कैसे मिलेगी.वह भ्रष्टाचार नहीं कर सकते. मतलब मेरा यही था एक फ्लो बन जाता है और आम आदमी भी सम्मिलित होता चला जाता है. यानि हरविंदर ने आम आदमी या देश के लिए शरद पवार को थप्पर मारा हो, ऐसा लगता नहीं है.

हरविंदर ने जरूर अपने लिए ही थप्पड़ मारा होगा. कुछ नाम हो आम आदमी जाने और उसे समाज में कुछ स्थान मिले. यही भूख उसे इस काम के लिए प्रेरित कर सकती है. या फिर सिर्फिरापन ही उसे इस काम तक पंहुचा सकती है. कहा एक ट्रांसपोर्टर के पास इतना समय हो सकता है वह काम छोड़कर शरद पवार को ढूढता फिरे और थप्पड़ मारे. समाज के लिए जोखिम में अपनी जान डालने की कोशिश अब तो कोई नहीं करता दिखता.

इसका थप्पड़ राजनीती के भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे का हल भी नहीं है. अब क्या शरद पवार महगाई को रोक लेगे या भ्रष्टाचार के आन्दोलन को चलने लगेगे. ऐसा कुछ तो होने से रहा. इसके लिए जब तक आम आदमी नहीं चेतेगा और अपने अधिकारों को अपना नहीं समझेगा तब तक तो सुधर आ पाना मुस्किल ही है. आप इन्हें एक- आध को गोली भी मार देगे तो भी कोई हल नहीं मिल पा रहा है. जरूरत है सोच – और समझ बदलने की. भला शरद पवार जैसे कद्दावर नेता पर भी कोई प्रभाव यह थप्पड़ छोड़ पायेगा कहना कठिन ही नहीं मुस्किल भी है. हा मलाल जरूर हुआ होगा. कोई उनकी दिनचर्या में फर्क पड़ा हो यह नहीं कहा जा सकता है. अब तो राज का काम ही हो गया भ्रषाचार. इसी से उनके दिन की शुरुआत होती है और इसी से ही रात्री भी होती है.

हां अब कांग्रेसियों को जरूर सचेत हो जाना चाहिए. जिससे जनता को भला- बुरा कहने और उकसाने में उन्हें पल- पल मार खाना पड़े. ऐसे भ्रष्टाचारी सरकार के अंग खुलेआम घूम – घूम जनता को गाली दे रहे है.

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