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केंद्रीय कैबिनेट ने गुरुवार को खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश (एफडीआइ) को हरी झंडी दे दी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की लगभग दो घंटे तक चली एक बैठक में मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी तक और सिंगल ब्रांड रिटेल में 100 फीसदी तक एफडीआइ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। कांग्रेस हमेश ही विवाद पैदा कर कुछ नयापन करने के चक्कर में फस जाती है. उसे तो केवल अपना ही हित समझ आता है और विरोध में डूबती जा रही है.
महगाई की मार से डरे और भयभीत कांग्रेसी, भारत सरकार व इसके कारिंदों ने फिर एक नया खेल खेल दिया. भारतीय इतिहास के काले पन्नो को फिर से खोल दिया और भारतीयों को ईस्ट इंडिया कंपनी की याद दिला दी. सरकार और सरकार से जयादा भयभीत यहाँ की जनता. आखिर यह भय क्यों? कौन सा जिन्न लेकर वालमार्ट आयेगा और कौन सा आदमी को खायेगा. इस भय को भुनाने की कोशिश में राजनीती भी होती है और कोई भी हित या अनहित नहीं सोचता आखिर क्या और किस वास्तु की कहा पर उपयोगिता है.
ऐसा निर्णय क्यों?
भारत महान सपूतो का देश है यह देश का नाम तो कमाते भी है और गवाते भी है. भाई आप दूसरो के देश में व्यापर करना चाहते है तो आपको भी तो अवसर देने भी होगे. देखो यह तो तय है. यदि नहीं दिया तो भारतीयों में कोई सोने के पर तो है नहीं जो यही केवल व्यापर करेगे और दूसरे देश नहीं. तो अगर जरूरी नहीं था तो फिर कांग्रेस को चाहिए था इस तरह का विवाद न फैलाये तो देश हित में होगा. तो ऐसी कैसे निर्णय लिया गया. जरूर कुछ न कुछ ऐसा है या हो गया है जिससे जरूरत पड़ी देश में वालमार्ट जैसे रिटेल कम्पनियों की. एक तो यह है किसी समझौते के तहत ऐसा निर्णय लिया गया. या फिर अभी हाल में कांग्रेस अध्यक्ष पूरे परिवार सहित देश से बहार इलाज (जैसा प्रचार था.) के लिए गए थे. ही सकता है राहुल या प्रियंका को वालाम्र्ट जैसी व्यवस्था पसंद आ गयी हो या फिर किसी का माध्यम बना होगा, हो सकता है कुछ लें- दें हो गे हो या जो भी हो बैरहाल यह निर्णय जरूर किसी प्रभाव के तहत किया गया है. तभी तो यह नहीं देखा गया की प्रान्त के चुनाव सर पर है और इसकी घोषणा कर दी गयी. बैर हाल जो भी हो कुछ न तो कुछ गड़बड़ है ही. अपने देश में ही उद्यमियों की कमी नहीं है, जो ऐसे स्टोर न खोल सके. अतः यह निर्णय गलत तो है ही और गैर जरूरी भी है.
आने से बड़ा परिवर्तन होगा?
हा यह निश्चित है/था यदि रिटेल में यह आये तो एक परिवर्तन जरूर होता जिसकी जरूरत भी है की शुद्धता बढाती ही नहीं मजबूरी होती. ये अपने नाम और कार्य के प्रति सजग और सावधान होते है. दूसरी बात विदेश में गड़बड़ी करना संभव नहीं. आज भारत में बड़े से बड़े बाज़ार हो या कंपनी यह सभी नकली और आम आदमी की जान से खिलवाड़ करने वाले उत्पाद बनाते है, यहाँ का अधिकारी हो या निगरानी करता सभी थोड़े लालच में बिक जाते है और फिर सुरु हो जाता है कमपनियो की लूट-खसोट. भले ही आदमी रहे या मर जाये. इससे तो बचाव होना तय ही था. यानि यह आम आदनी के हित में था. अगर आप अपने आस-पास ही देख ले तो हर वास्तु में यहाँ के व्यापारी कुछ न कुछ घालमेल अवश्य करेगा.
जनता नहीं, भयभीत है व्यापारी, नेता व अफसर?
वालमार्ट से जनता उतनी नहीं भयभीत जितना यह नेता और अधिकारी है. यह व्यापार तो लिख- पढ़ी व साफ- सुथरा होगा तो फिर लूट-खसोट कैसे होगी. एक व्यापारी अगर कुछ देगा भी तो कितना. एक की जगह अगर दस हजार होगे तो उनसे बहुत बड़ी कमी संभव है. यानि व्यापर कर कार्यालय की जरूरत घाट जाएगी. हमारे यहाँ का व्यापारी बड़ी ही बेशर्मी से व्योपार करता है. वस्तु भी घटिया, मिलावटी व बेधागे दाम के साथ दमंगायी से व्यापर होता है. तमाम उधाहरण है. भारत है यहाँ वनस्पति और रिफयिंद की जगह जानवर की चर्बी तक लोगो को खिला दी गयी है. तेलों या रेफयिंद में मिलावट तो आम है. भारत में तो रिवाज है अधिक से अधिक दाम पर वस्तुओ को बेचने का. आखिर खल रहा है तो इन वेइमान व्यापारियों को, अधिकारियो को, और लुटेरे नेताओ को.
आपको कोई फर्क नहीं?
आप को तो वैसे भी नशा है विदेशी कपड़ो का, श्रंगार का, खाने का, पीने का, और गाडियों का. तो फिर भला जब आप इन सभी का इस्तेमाल कर गर्व से सर उठाते है और समाज को बताते है, तो फिर वालमार्ट जैसे स्टोरों से क्या परहेज. आपके पास पैसा है तो जरूर अप कुछ न कुछ तो ऐसा प्रदर्शन कर रहे होगे या फिर आपके परिजन. बहुत कम हिन्दुस्तानी परिवार बचे होगे जो इस प्रगतिशील दुनिया में विदेशी चीजो या तकनीक के इस्तेमाल से बच पाए हो. नव युवा तो दीवाना सा दिखता है. वह सदैव इन विदेशी वस्तुओ के पीछे ही भागता नजर आएगा. वालमार्ट यहाँ नहीं होगा तब भी जिन्हें विदेशी वस्तुओ को इस्तेमाल करना ही है उन्हें कोई नहीं रोक पायेगा. मुझे ध्यान है कभी बचपने में नई- नई रीको घडी जब मिली तो एक अजीब सी खुसी थी और अपने को दूसरो से कुछ भिन्न पा रहा था.
आप बंधुआ तो हो नहीं जायेगे?
यह देश स्वतंत्र है यहाँ आकर व्यापर करने वाली कोई भी कंपनी यहाँ आपको भारत सरकार खरीद के लिए कोई कानून नहीं बना रही की आप उसी वालमार्ट से ही कोई वस्तु खरीदो या फिर वही से लेकर खाओ. भाई यहाँ के व्यापारियों से सस्ती पड़ेगी और गुणवत्ता में खरी होगी तो लोग खरीदेगे ही. यह तो बड़ी ही वाजिब बात है. देखो आज भी भारतीय महानगरो में बने तमाम बाज़ार ऐसे है जहाँ पर आप जरूर गए होगे. वह रुक कर अवलोकन करे कौन सा वर्ग खरीददारी कर रहा है और कौन सा वर्ग केवल देखने- सुनाने आया है और कौन ऐसे ही लौट रहा है. आप समझ जायेगे. कुछ लोग तो यह से चाय तक ले कर जा रहे है, लेकिन काफी ज्यादा लोग सीधे घूम- फिर कर वापस आ जाते और फिर नहीं जा पाते. यानि सभी लोग की हैसियत आज भी नहीं है, बड़े बाजारों में खरीददारी की.
तो भला आप ही विश्लेषण करे कोई कानून थोड़े ही बनेगा आप लोग सुबह से कुछ खरीदारी करो इन विदेशी स्टोरों में. यह तो आपकी हैसियत है तो वही पड़े रहो. भारत की अधिकांश आवादी ही है जो इन सब सुविधाओ के इस्तेमाल करने लायक धनोपार्जन नहीं कराती है. तो भला इन स्टोरों में सब लोग क्या करेगे. आप न जाओ. खुद बा खुद वालमार्ट भाग जायेगा. बिकेगा नहीं तो क्या करेगा.
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