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उत्तर प्रदेश के विभाजन ने एक बार फिर से देश के बुध्जीवियो को यह सोचने पर मजबूर कर दिया क्या वाकई इससे उस तथाकथित प्रदश का विकास संभव है. या सिर्फ यह राजनीतिक हथकंडो से इस देश और जनता की भावनाओ को बाटा जा रहा है. लोगो का मानसिक विभाजन किया जा रहा है. कुछ लोग सत्ता के लोभ के लिए भी यह कदम उठाने से नहीं चूक रहे है. कुछ लोगो को लग रहा है यह मुद्दा सवेदनशील है और इसके जरिये हम पुनः सत्ता में आ सकते है.
छोटे राज्यों क्या हो रहा है यह सभी जानते है. जनता कि परेशानिया वही है, जनता वैसे ही है, हा राजनीतिक महत्वकंछा के आपूर्ति का साधन अच्छा है. कहने के लिया फल स्टेट के मुख्यमंत्री यानि राजा है. अभी हाल में उत्तर प्रदेश को बिभाजित कर उत्तराखंड बनाया गया, कोई फर्क पड़ा. मेरे हिसाब से नहीं वरना आज उत्तराखंड में समस्याए होती ही नहीं. वही पार्टिया है, वही नेता है, जिनकी नजर केवल मात्र सत्ता में ही केन्द्रित रहती है. इनका विकास से कोशो कोई भी रिश्ता नहीं रहता. एक प्रदेश झारखण्ड का भी निर्माण केवल त्वरित और विकास के वास्ते ही तो किया गया था. नतीजा साफ़ आया, एक मुख्यमंत्री ने कई हजार करोडो का खेल कर दिया और विकास को हसिया में डाल दिया, छत्तीसगढ़ का हाल तो सभी को मालूम ही है, देश के जवानों की निर्मम हत्याए हुई, इतना विकास के मामले में आगे निकल गया. कौन सा राज्य है जो अपनी पीढ आज ठोके. कौन सी पार्टी है जो अपनी पीठ ठोके की इस विभाजन से उस क्षेत्र के लोगो का कोई विशेष लाभ हुआ है. अगर हाउ है तो उसे समझे कही उत्तर प्रदेश में उससे अधिक तो नहीं हो गया. राज्य छोटा हो या बड़ा इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता. पड़ता है उन शासको से जिनमे कुछ करने की इच्छाशक्ति होती है और प्रजा के भलाई के लिए कार्य करते है. यहाँ तो सभी पहले पैसा चुनाव में लगते है और बाद में उसे माय ब्याज के वाशूलते है फिर कई पुश्तो को
मजबूत कर देना चाहते है. देखना ही है तो आज बिहार को देखो. उसका उतना ही विकास हुआ होता जितना आज हुआ है, अगर लालू में बिहार के लिए कुछ करने की इच्छा शक्ति होती. यह तो केवल अपने रिश्ते नाते दरो और बिरादरी में फसे रहे और राष्ट्रीयता की भावना के साथ खिलवाड़ कर बिहार को नरक बना दिया था. आज मै ही नहीं कोई भी व्यक्ति आँख मूदकर कह सकता है आज बिहार आगे हुए है. यही तब भी होता जब झारखण्ड इसमे जुडा होता. विकास होता. उतना विकास शायद उत्तराखंड, झारखण्ड व छत्तीसगढ़ का भी नहीं हुआ होगा. जितना बिहार में मिला होने पर झारखण्ड का होता. नतीजा सामने है बिहार के मुख्यमंत्री में कुछ कर गुजरने की क्षमता है और उसने किया भी.
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री तो सकूफेबाज सुरु से ही रही है. जितना प्रदेश में जिले इस महिला ने बना दिया शायद ही कोई मुख्यमंत्री बना पाया हो. यह तो हमेशा से ही विवादित मुद्दों को फलो करती रही है, विकास का पैसा उसने आज स्मारकों और अपनी प्रतिमाओ की महिमा स्थापित करने में लगा दिया उससे इस प्रदेश के किस्मत ही बदल जाते. लेकिन यह विकास को नजर अंदाज कर इस प्रदेश को भिजन का लालीपाप दिखा कर अपना श्रेय लूटना चाहती है और किसी तरह से पुनः सत्ता में पदासीन होना चाहती है. यही उसके कार्यो की समीक्षा कर ली जाये तो शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो यह कहने को तैयार होगा नहीं यह ठीक है. इस महिला के शासन में तो केवल भ्रष्टाचार को ही बढ़ावा मिला है. सबूत भी है इसके सहयोगी मंत्रियो को निकला जाना. किसी भी प्रमाण लेने की आवश्यकता नहीं पिछले दिनों जेल तक में लोगो को मरवाया गया तो केवल किसी मंत्री का हाथ नहीं बल्कि गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास था और तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री को हटाने के बाद नये मंत्री के समय में ही समय ही डॉ सचान को मरवाया गया था. यानि अब आप समझे इस समय प्रदेश में क्या स्थित है. लूट के पाप को छिपाने के लिए कही मारा जा सकता है.
यह शुद्ध राजनीतिक चाल है. इससे प्रदेश का बटवारा तो नहीं होना हा छत्तीसगढ़ जैसे हालत जरूर हो सकते है. इसे विकास का हिमायती नहीं कह सकते है. इस तरह की प्रवृत्ति कुछ लोगो में तो शायद होती ही है. यह अपने हितो को आगे कर प्रदेश के हित को अनदेखा कर देते है. यह सूचना तकनीकी का समय है कही भी कुछ भी देखा और सुना जा सकता है. विभाजन सही हल नहीं है. आप इस देश के टुकडे कर दीजिये तो भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. हा ऐसे नेताओ से जरूर सावधान रहने की जरूरत है यह कभी भारत की अखंडता से खिलवाड़ कर सकते है.
प्रदेश के विभाजन से एक फर्क जरूर पड़ेगा बच्चो को तमाम प्रदेशो के नाम को याद करना पड़ेगा, मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों को रटना पड़ेगा. एक की जगह चार मुख्यमंत्री होगे और चारो के तमाम एक ही पद के चार मंत्री होगे, एक की जगह चार गुना खर्च होगा. पैसा तो बढ़ाना नहीं, जहाँ आज सत्तर मंत्री प्रदेश को लूट रहा है वह पर दो सौ अस्सी मंत्री लूटेगा. समझो कैसा विकास होगा, प्रदेश में हेलीकाप्टर सहित तमाम सुविध्ये है विकास के त्वरित कार्य करने को. जब पैसा वही होगा और हिस्सेदार तमाम हो जायेगे तो जरूर खर्च पूरे प्रदेश से के सरकारी खर्च का कई गुना अधिक हो जायेगा.
यह मायावती की विभाजनकारी नीति है और अब विभाजन की प्रक्रिया तो बिलकुल ही अवांक्षित और स्वहित पर टिकी हुई है.
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