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इस देश में कौन से लोग कितनी जल्दी अपना – अपना खजाना बना ले कोई अतिश्योक्ति न होगी. अभी हॉल में कुछ एक कर्मचारी देश के कई प्रदेशो से गिरफ्तार किये गए है. जिन्होंने सरकारी नौकरी में बहुत ही मामूली पद पर कार्य करते हुए करोड़े बटोरे. मतलब की बात तो यह है कोई भी क्यक्ति कही पर भी गलत ढंग से पैसा बनाने में चुकाना नहीं चाहता है. अब आप सोचिये एक मामूली पियून या सपही या हवालदार आदि अपनी तन्खवाह से कही कई गुना अधिक की कमाई करते है. उसी के अनुपात में अगर हम पूरे देश के मालिक इन केन्द्रीय मंत्रियो की गड़ना करे तो वह भी हार जायेगे और इनकी कमाई का प्रतिशत कही अधिक निकलेगा.
एक अदना से सिपाही और हवालदार की हैसियत शायद ही किसी लघु कारोबारी से कम हो. व्यापारी हो या कारोबारी उसका तो लाभ निश्चित है, वह उससे अधिक न तो ले सकता है और न ही कमा सकता है. हाल की घटना ने बड़ो- बड़ो के भी होश उड़ा दिए है.
अब इन नजीरो को देखा जाये.
ग्वालियर में अपराधिक अनुसन्धान शाखा परिवहन विभाग के एक हवालदार नीलम मिंज के यहाँ पर छपा मारा. जहाँ पर अकूत संपती मिली, जो उस कर्मचारी की हैसियत से कही अधिक है. 2003 में सरकारी नौकरी ज्वाईन करने वाले नीलम के वेतन की सुरुआत 3000 रुपये से हुई. अभी लाकर खोले नहीं गए है, अब तक मिले कुल वेतन का हिसाब लगाएं तो आठ साल की नौकरी में 6.79 लाख रुपए बनता है, लेकिन संपत्ति एकत्र हो गई सवा करोड़ रुपए की, जबकि अभी बैंक का लॉकर नहीं खोला गया है। maje की बात यह है कि नीलम 5.50 लाख रुपए बीमा प्रीमियम के रूप में जमा कर चुके हैं, जबकि अब तक की नौकरी का उसका कुल वेतन 6.79 लाख रुपए बनता है। है न अजूबे कारनामे. ग्वालियर में पांच माह में परिवहन विभाग के दूसरे हवलदार के खिलाफ छापे की कार्रवाई की गई है। हाल में ईओडब्ल्यू ने परिवहन विभाग के आरटीआई के उज्जैन स्थित आवास पर छापा मारकर लगभग 10 करोड़ की संपत्ति का खुलासा किया था
आज से कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश में भी एक RTO का एक सिपाही भी अकूत संपती जुटाने का मामला सामने आया था. यानि इस लूट के मामले में सभी एक से बढ़ कर एक है. कैर उत्तर प्रदेश में तो कार्पोरेट लूट आज भी परिवहन क्षेत्र में जारी है. हर जिले का RTO आज सड़क बेच कर रुपये कम रहे है. प्रदेशो में तो कोई भय है ही नहीं. कभी के आध मामले ही खुल पाते है. वह भी लीप-पोत कर बराबर कर दिए जाते है. और वही लोग फिर से लूट में सामिल हो जाते है.
एक सूचना के अनुसार बलरामपुर में मोटर वाहन विभाग चेक गेट में गंजम जिले में उड़ीसा – आंध्र प्रदेश की सीमा में काम कर रहे चपरासी एक करोड़ रुपये से अधिक के लायक आय से अधिक संपत्ति रखने के लिए गिरफ्तार किया गया था. Sabaradeipeta जर्दा पुलिस थाने के तहत गांव के जगा राव रेड्डी को सतर्कता पुलिस कल गिरफ्तार किया गया था – रेड्डी, जो 1985 के बाद से चेक गेट पर एक चपरासी के रूप में काम कर रहा था भी कृषि उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में श्रीकाकुलम जिले में कम से कम 20 गंजम जिले के विभिन्न स्थानों में 15 एकड़ से अधिक भूमि को मापने के पास है. इसके अलावा, वह श्रीकाकुलम जिले में दो इछापुरम और नालाबनक में उद्यान है.
अभी आजकल के समाचारों में भी हम सभी ने पढ़ा होगा, मध्य प्रदेश लोकायुक्त पुलिस ने कहा है कि उन्हें उज्जैन नगर निगम के एक चपरासी के घर पर छापे के दौरान चार करोड़ सत्तर लाख की संपत्ति का पता चला है. लोकायुक्त पुलिस के पुलिस अधीक्षक अरुण कुमार मिश्र ने बताया कि नरेंद्र देशमुख के घर पर 12 घंटे तका छापा चला. उन्होंने बताया कि छापे के दौरान कई आपत्तिजनक दस्तावेज़, दो मकान, चिकन की दुकान, उज्जैन-इंदौर रोड पर मुर्गियों का फ़ार्म, गाँव में पाँच एकड़ ज़मीन, मुंबई में निवेश सहित सवा लाख के जेवर और ढाई लाख नकद भी मिला. मिश्र के मुताबिक इन संपत्तियों का बाज़ारी मूल्य बहुत ज़्यादा है
यह तो उदाहरण है जो जनता के निगाहों में आ गए. यह ही तब जब किसी दूसरो से लड़ाई-झगडा हुए और एक दूसरो की शिकायत की गयी नहीं तो यह वैसे ही अनजान से कमाई कर रहे होते. अब आप सोचिये यह कितने सत्ता के निचले पायदान कितने मजबूत है और अगर इनके पद नेता पद होता तो कितनी बड़ी धनराशी ये जूता लेते. जरा सोचिये और इन सामाजिकता के हत्यारों को सजा दिलवाए.
सवाल यह है सरकार को जो राजस्व मिलता है उसकी चोरी रोकने के पुख्ता उपाय क्यों नहीं किये जा रहे है. उपरोक्त सभी मामले इन लोगो द्वारा जाहिर सी बात है सरकार के राजस्व की चोरी को बढ़ावा दे खुद के लिए पैसा तैयार किया गया. सरकार को धोखा दिया गया. यही इन राजस्वो के रखवाले भी है. यानि रक्षक ही भक्षक है. सरकारी कर्मचारियों के द्वारा इस तरह के किये गए कृत्य के लिए कदा दंड के विधान न होना भी इन्हें हमेशा ही इस तरह की चोरी करते रहने का संरक्षण करते है. समाज के द्वारा अदा किये जाने वाला कर भी समाज का ही होता है. जिससे विकास का पहिया घूमता है.
अब जरूरत है इस तरह के कार्य करने वालो को ततकाल दंड देने की. आज भी इन सरकारी चोरो को कोर्ट द्वारा या फिर हेरफेर कर फिर बहाल हो जाना भी प्रमुख है. जिसके कारन ही यह प्रवृति ख़त्म होने की बजे बढाती ही चली जा रही है. अब आवश्यकता है कुछ सवैधानिक संशोधनों की जिससे सामाजिक और विकास के धन की लूट को रोका जा सके. नींम उपाय जरूरी हो रहे है.
1 – सेवा शर्ते चरित्र के आधार पर हो.
2 – किसी भी प्रकार के ठोस आधार पर कोर्ट जाने का भी विधान न हो. जैसे -यदि सतर्कता अधिकारियो द्वारा रंगे हाथो पकडे गए कर्मचारी/अधिकारी को कोर्ट के
बजाय उसकी साडी संपत्ति को कुर्क कर सरकारी संपत्ति घोषित कर दी जाये.
3 – रगे हाथो या सचित्र प्रमाण पर कोर्ट का मौका न दिया जाए.
4 – पकड़ में आते ही बर्खास्त किया जाये और जेल में भेजने के साथ- साथ पुनः उसी सेवा में भविष्य में बहाली न हो.
5 – किसी प्रकार के सरकरी धन, राजस्व व विकास का पैसा किसी भी रूप का हो उसे सरकारी सेवको या गैर सरकारी संघठनो द्वारा लूटने पर संगेय अपराध के
साथ- साथ म्रत्यु दंड जैसा ही विधान किया जाये. यदि किसी गरीब के खाने का धन लूट लिया जाए तो उसे तो रोज ही मरना पड़ता है.
कही न कही बड़ी गड़बड़ी तो है ही, जो भारतीय राजनीतिको/सरकार से लेकर यहाँ के न्यायलय तक यह लूट रोकने में अपने आप को अक्षम पाते है.
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