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सरकार, मंत्रियो या जनता किसे– बचाए ?

BEBASI
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बेचारी कांग्रेस के सरकार की आफत ही आफत है. जनता के दुखो से जूझ नहीं पा रह है, बला है की एक नई रोज खडी ही हो जाती है नई मुसीबत जुड़ जाती है. सरकार अब तमाशा भी बनती जा रही है. उधर एक “अन्ना” है वह अलग से अपना राग अलाप रहे है. सरकार है तो सोच- सोच कर परेशान है आखिर करे तो क्या करे? आखिर हद होती है दिक्कतों की. यहाँ तो हर पल में हर दिन इस सरकार को यानि सरदार को किल्लत और जिल्लत दोनों को बर्दास्त करना पड़ा है. लेकिन बेचारा मनमोहन जी करे तो क्या करे, जो किया है वह काटना तो पड़ेगा ही. न ही प्रधान मंत्री बनाते और न आज यह दिन देखने पड़ते.

कही थरूर के बयानबाजी और त्विटिंग ने सरकार के नाक में दम कर दिया और फिर कृष्ण की बदजुबानी से आज तक 2 G स्पेक्टाम घोटाला से लेकर लोकपाल, फिर महगाई और अन्ना, कलमाड़ी का खेल्मंडल का भ्रष्टमंडल और खुदरा रिटेल शाप में फुल FDI और न जाने क्या क्या बेचारे एकलौते मनमोहन की मुरली को भुला डांस मास्टर बना दिया. फिरकी की तरह नाच रहे मनमोहन इस समय नाकाम और कहा जाये तो सबसे कमजोर प्रधान मंत्री साबित हुए है. इनके सहयोगी मंत्रीगण भी लूटने के चक्कर में सरकार को चक्कर में डाल रहे है. चिदंबरम से लेकर कृष्ण भी एकदम नए प्रकरण खनिज घोटाले में लिप्त रहने के आरोप भी लग गए. अब बताओ बेचारे मनमोहन क्या करे? जनता का भार यानि कर्ज अलग है फर्ज अलग है, वही सोच- सोच सरदार जी काफी दुखी हो चुके है. इस समय वह कैसे जी रहे होगे वही जान रहे है.

इधर महगाई है तो जनता को परेशान किये है और उधर इन्ही के मंत्री भी इन्ही को परेशान किये हुए है. क्या करे बेचारे अपने को बचाए या फिर सर्कार को बचाए या फिर इन भ्रष्ट मंत्रियो को जिन्होंने उनके लिए काटे ही काटे बो दिए है. उधर ममता है तो अलग से दुखी कर देती है. वरना इस बार जो फजीहत रिटेल में FDI में हुई कभी नहीं होती. ऐसा लगा जैसे सरकार अल्पमत में आ गयी और अब गिरी, तब गिरी. जनता और अन्ना इन सबको तो पुलिस रोक लेती लेकिन यह फजीहत कौन रोक सकता है. आदम एक है और मुशिबते तमाम. भला कैसे इनका कोई हल निकले.

मै तो कहता हूँ जैसे सरकार आम आदमी को भुला केवल व-वही के लिए काम कर रही है और अपनी ही पीठ थपथपा रही है वैसा ही मंत्रियो के मामले में भी करना चाहिए. जिस प्रकार जनता आज बेसहारा है उसी तरह मंत्रियो के बचाने का काम क्यों?

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