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जो भारत के नेता नहीं कर पाए उसी के नतीजा है की गिलानी ने कह दिया “अगर अफजल गुरु को फंसी दी गयी तो काशीर सुलग जायेगा.” भारत के नेता कुछ करना तो छोडो आज तक उस अफजल गुरु को पाल रहे है. वाकई में उस हमले में कुछ इन नेताओ को भी मरना चाहिए था तब उन्हें महसूस होता अपने को खोने का दर्द. आज दसवी बलिदान दिवस के अवसर पर श्रधान्जली का नाटक का आयोजन अवश्य किया गया. सभी ने उनके परिवार वालो की सुधि तो ली नहीं बल्कि एक नाटकीय आयोजन अवश्य किया. यह तो अच्छा हुआ उन संसद के शहीदों के परिजनों ने शिरकत नहीं किया. तब भी इन देश के खद्दर धारियों और गाँधी जी के अनुयायियों को केवल अपनी कुर्सी ही दिखाती रही और इनका दर्द नहीं दिखा. बलिदान दिवस को अगर उपहास दिवस कहा जाये तो अतिश्योक्ति न होगी. इसमे देश के वीर सपूतो का अपमान और उपहास किया गया. भारतीय संसद की गरिमा को ठेस पहुची. न्याय का ढिढोरा पीटने वाले लोगो ने न्याय का ही उपहास किया. इससे देश की सुरक्षा एजेंसियों में हताशा ही फैलाती है.
भारत के जनप्रतिनिधि यानि संसद खुद के ऊपर किये गए हमले में आज तक कोई भी निर्णय नहीं ले पाए. भला देश की जनता इनसे क्या उम्मीद करे? यह आक्रमण कही देश के किसी और भाग में हुआ होता तो कुछ और बात होती. बात क्या इतनी हो हल्ला नहीं मचाता और न ही वरसी आदि का आयोजन होता. रोजाना न जाने कितना लोग मरते है और सरकार उन कारणों को भी जानने और निवारण की कोशिश तक नहीं कराती. देश के लगभग 75 जवान नक्सलियों से संघर्ष कर ख़त्म हुए कुछ भी आयोजन किया जाता है. आज भी वह पर वही हालात है. कही कुछ बनाया नहीं जाता, कानून में इतना भी संशोदन नहीं किया जाता की ये हादसे दोबारा न हो. अबी हाल में पश्चिम बंगाल में सौ से अधिक लोग मिलावटी शराब में मारे गए. मै दावे के साथ कहता हूँ वह की सरकार भी कुछ परिवर्तन नहीं करेगी और न ही इतना साहस करेगी की पूर्ण शराबबंदी कर दे जिससे दोबारा कभी भी इस तरह की घटनाये न हो. फिर भला ये संसद जो कभी- कभी ही संसद जाते हो उन्हें इन सब से क्या लेना- देना. संसद क्या देश पूरा जल जाए उन्हें तो बस अपनी कुर्सी और पैसा ही प्यारा है. मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए ही भारतीय कानून और सविधान से खिलवाड़ किया जा रहा है और आज तक उस अपराधी को सजा तो दिलवा नहीं पाए उल्टा छूता हुआ पराधी कश्मीरी जनता को भड़काने का काम कर रहा है और देश को धमाका रहा है.
बताते चले आज से दस वर्ष पूर्व 13 दिसंबर 2001 को जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकियों ने संसद पर हमला किया था। इस हमले का संसद परिसर में तैनात सुरक्षा बलों ने मुंहतोड़ जवाब दिया था और सभी पांच आतंकियों को मार गिराया था। इस सबसे बड़े हमले में दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल, संसद के दो गार्ड, संसद में काम कर रहा एक माली और एक पत्रकार शहीद हो गए थे।
आज इस देश के कानून रचना के स्तम्भ पर इन अक्रद्मान्य नेताओ की मै भरषक निंदा ही नहीं बल्कि उन परिवारों के साथ हूँ जिन्होंने इतना गम शहकर भी इस दिखावटी सरकारी और कांग्रेसी उसव में नहीं उपस्थित हुए. उनके सहस की मै भूरी प्रसंसा करता हूँ. और कमाना करता हूँ धीरज के साथ अपने जीवन को आगे बढ़ाते रहे. मेरी कमाना है इन्हें इनके अन्दर की ताकत को ऐसी शक्ति मिले जिससे यह अपने आप को मजबूत ही नहीं बल्कि इस देश की रक्षा के लिए फिर से खड़े होकर एक नई राह दिखाए!
जय हिंद ! जय भारत !! शहीद भाई अमर रहे !!!
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