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कभी बहुत ही अनुशासित रही भारतीय जनता पार्टी आज अपना भी रुख बदल रही है. सत्ता के सुख से दूर बैठी विपक्ष का दर्जा शायद अब सहन नहीं हो रहा है इन भाजपाई नेताओ से. तभी तो बसपा से निकले बहुत से मंत्रियो और विधायको को जो पार्टी विरोधी गतिबिधियो में या भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे में फसे और लोकायुक्त के द्वारा कि जा रही जाच में फसे नेताओ को निकला गया. इस देश कि यही तो बिडम्बना है इधर का घूसखोर उधर और उधर का घूसखोर इधर. बस अब ऐसा ही कुछ चलता रहता है. कभी इन सभी दुरगुड़ो से दूर रहने वाली भाजपा इस बार फस गयी. शायद आकलन में ही गड़बड़ी हो गयी. नहीं तो आज तक बाबू सिंह कभी कोई चुनाव जीत नहीं सके है. वह तो उस समय समाजवादी पार्टी के गुंडागर्दी से ऊबी जनता ने बसपा की सरकार बनवा दी थी. बाबु सिंह ही मायावती की जी हजूरी कर ओहदा पा गए और सुरु कर दिया अपने को शिखर में बिठाने का. एक भ्रष्ट आदमी का भला क्या उपयोग हो सकता है? यह तो भाजपा में उसे लेन वाले ही बता सकते है. कौन सा नया सन्देश जनता के बीच बाबू सिंह के द्वारा जनता को देना चाहते है.
बाबू सिंह की आवश्यकता या भाजपा की ?…
आखिर बाबू सिंह की आवश्यकता भाजपा को थी या बाबू सिंह को जरुरत थी भाजपा की. बहस का मुद्दा यही है. कभी भाजपा के सिपाही रहे बादशाह सिंह रूठ कर बसपा में चले गए थे. बसपा में उनपर भी लगे लोकायुक्त जांच पर भ्रष्टाचार के आरोप. तो बाबू सिंह पर भी लगे. बाबू सिंह के मंत्रालय में भ्रष्टाचार से सम्बंधित सीबीआई जांच चल रही है. जिसे लेकर बाबु सिंह की गिरफ़्तारी कभी भी हो सकती थी या है. जिसे लेकर बाबु सिंह भी परेशां थे. अभी हाल में सीबीआई को बयां भी देकर लौटे भी तो कोई भी आशंका नहीं थी की गिरफ़्तारी हो सकती है या छपा पड़ सकता है. भाजपा में पिछडो में कुर्मियो की उत्तर प्रदेश में काफी अधिकता रही है. अन्य पिछडो की कमी के चलते भाजपा का भी कोई दाओ सामने नहीं आ रहा था और किसी को भी आगे बड़ा नहीं पाए. इसी कमी को पूरा करने के लिए भाजपा ने भी बाबु सिंह को बादशाह सिंह के साथ लपकना ठीक समझा. बाबू सिंह भी जानते है आज नहीं तो कल जनता बा कांग्रेस से ऊब रही है और सत्ता पलटेगी तो भाजपा ही ऐसी है जो सरकार बना पाने में सक्षम होगी. तब कुछ रहत की उम्मीद ले कर भाजपा का दमन थाम लिया. यानि थी दोनों को जरुरत. एक दूसरे को पाते ही गले लगा लिया.
शोसल फार्मूला या कुछ और……….
अभी भी सोसल फार्मूला कुछ भी गले नहीं उतर रहा. न तो भजा नेताओ के न ही और न ही अन्य पार्टियों के. यानि कही कुछ गड़बड़ जरुर है. राजनीती भी बहुत ही गूढ़ है इसे भी समझाना काफी कठिन रहा है. फिर भाजपा की. यहाँ तो नेता की कम संघ की ही ज्यादा चलती है. आज जब बाबु सिंह पार्टी के अन्दर-बहार पर बहस और भीतर के चक्कर में पड़े है तो समझ में आ जाता है, जरूर किसी जोरदार नेता ने ही भाजपा की गोद में बाबू सिंह को बैठाया है. यहाँ किसी भी भ्रष्टाचारी से किसी सामाजिक प्रतिपूर्ति को समझा जाये तो भाजपा के लिए यह भूल ही होगी. गडकरी भी संघ के ही निर्देसो पर रहे है, और आज वह भी इस मुद्दे पर निरुत्तर हो गए और अब अपने ही बड़े कदम वापस लेने में भी हिचक रहे है. यह जल्दबाजी में लिया गया निर्णय है जिससे किसी प्रकार की भाजपा की सामाजिकता की प्रतिपूर्ति नहीं हो सकती है.
आ तो गए, जाने से कोई लाभ- हानि…….
अब तक भाजपा की राष्ट्रीय स्तर पर जितना भी किरकिरी होनी थी वह हो गयी और लेना ही गलत बताया गया, भाजपा की नीति के खिलाफ भी इसे बताया गया और था भी. लेकिन अब आ अगये तो जाने से भी कोई लाभ नहीं. पार्टी के नेता जनता को उत्तर प्रदेश के चुनाव में बतायेगे, क्यों भाजपा में बाबू सिंह को लिया गया था/है. आखिर देश की जनता भी आज तरह – तरह के संचार साधनों के जरिये से हर तरह के प्रश्नों के उत्तर भी खोज लेती है. अब अप्रती भ्रष्टाचार के रुख को कैसे अख्तियार कर पायेगी, संसद में कैसे सांसदों को पार्टी समझा पायेगी. लोगो को कहा तक बताएगी, बाबु सिंह भ्रष्ट नहीं हमने जब लिया था तो कोई भी आरोप नहीं था. अब हमने ले लिए पार्टी में तो कांग्रेस ने बाबु सिंह को भ्रशाचारी घोषित कर दिया.
किसने क्या कहा.?………
संघ में भी बवाल मचा जब बाबु सिंह को ले लिया गया. संघ/आरएसएस के साप्ताहिक मुखपत्र ‘पांचजन्य’ के ताज़ा अंक के संपादकीय में उत्तर प्रदेश के लोगों से अपील की गई है कि वे ऐसे लोगों को न चुनें जिनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हों या फिर उनकी छवि एक दलबदलू नेता की हो. एनआरएचएम घोटाले में आरोपी उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा के भाजपा में शामिल किए जाने का ऐलान किया गया, तभी से पार्टी और पार्टी के बाहर इस कदम की भारी आलोचना हो रही है. कहा जा रहा है कि कुशवाहा को पार्टी में शामिल किए जाने पर पार्टी के बड़े नेता नाराज हैं. उनका कहना है कि इससे भाजपा की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई कमजोर पड़ती है.
अन्ना टीम …………
टीम अन्ना ने बाबू सिंह कुशवाहा को भाजपा में शामिल किए जाने की निंदा की है. पहली बार भाजपा को आड़े हाथ लेते हुए टीम अन्ना के अहम सदस्य संजय सिंह ने कहा कि कुशवाहा को भाजपा में शामिल किया जाना यह साबित करता है कि भाजपा भी भ्रष्टाचारियों से रिश्ते जोड़ने में पीछे नहीं.
सहयोगी पार्टी के नेता और बिहार के मुख्य मंत्री ने कहा………………
नीतीश कुमार ने बाबू सिंह कुशवाहा को भाजपा में लिए जाने को पार्टी में गलत परंपरा की शुरुआत बताया. नीतीश ने कहा कि कुशवाहा को भाजपा में लिया जाना उनकी समझ से परे है. इसे लेकर पार्टी में भी असंतोष है.
विपक्षी कांग्रेस ने भी जादा आरोप.ओ कटाक्ष किया…………..
कांग्रेस ने भी भाजपा की टांग खींचने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. उसने भ्रष्टाचार के मामले में भाजपा के दोहरेपन का आरोप लगाया है और टीम अन्ना भी उसके खिलाफ आ खड़ी हुई है. कांग्रेस ने बीजेपी की राष्ट्रपति से मुलाकात पर जोरदार कटाक्ष किया. राशिद अल्वी ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई करने वाली बीजेपी राष्ट्रपति से मिलने जब गई थी तो क्या अपने साथ कुशवाहा को लेकर गई थी.
इस बाबु सिंह ने तो भाजपा के भ्रष्टाचार की मुहीम तक में ब्रेक लगा दिया और भाजपा में दो फाड़ करने तक की भूमिका निभा रहे है. नितिन गडकरी ने ही कुशवाहा को पार्टी में शामिल किया है. गौरतलब है कि इस फैसले पर बीजेपी में दो खेमे बन गए हैं. एक खेमा कुशवाहा और बादशाह सिंह को लाने को ‘सोशल इंजीनियरिंग’ के तहत सही फैसला मान रहा है, वहीं दूसरा खेमा इसे पार्टी की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की धार कुंद करने वाला मान रहा है. अब तो नेताओ में भी एक विशेष मुद्दा के खात्मे की और इंगित कर रहा यही बाबु सिंह पार्टी को कई माने में नुक्सान भी पंहुचा रहे है. जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है.
पार्टी के इस निर्णय से जो भी भाजपा को हानि हुई है व साख में बट्टा लगा वह कहा से भरपाई होगा कहा नहीं जा सकता. एक सड़क के आदमी को पहले बसपा ने कमी करा सत्ता में बिठा दिया, उसी को भाजपा ने लाकर पार्टी में ही दो फाड़ कर उसे राष्ट्र्य स्तर पर प्रशिद्ध करावा कर राष्ट्रीय नेता बनाने का काम कर दिया. वरना भाजपा में बाबु सिंह की कोई भी आवश्यकता नहीं थी.
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