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आज देश में चुनाव आयोग ने एक नयी पहचान दे दी बसपा के चुनाव चिन्ह हाथी को लेकर. राज्य के सभी हठी प्रतिरूपों को/मूर्तियों को जाले में यानि परदे में बंद करवा दिया. मतलब यह दिखे नहीं. जन- जन को मतदान करने के लिए और साफ- सुथरे चुनाव के लिए चुनाव आयोग अपनी कोशिश में लगा रहता है. इन्ही कोशिशो की गाज मायावती और उनके चनाव चिन्हों पर गिरी. यह कोई मतभेदों से भरा निर्णय नहीं था. देश के साथ राज्य के चुनाव के लिए लिया गया एक बहुत ही सार्थक उपाय था, नहीं तो हर चौराहों पर लोग अपने- अपने चुनाव चिन्हों की मूर्तियाँ टांग देगे.
भारत सरकार के प्रजातान्त्रिक कानून के दुरुपयोग का नमूना उत्तर प्रदेश से कही भी अच्छा नहीं मिलेगा. जनता के विकास का पैसा केवल पार्को में लगा कर उसमे अपनी मूर्तियों को गढ़ना अगर सही था तो मै यह साफ- साफ कह सकता हूँ यह कानून का अच्छा पहलू नहीं है. देश की अदालते भी इस तरह जनता के पैसे से खिलवाड़ को भी नहीं रुकवा सकी. यह तो उससे ज्यादा खेद का विषय है. अभी तो केवल उत्तर प्रदेश की राजधानी में और यहाँ की आर्थिक राजधानी नॉएडा में भी यही पार्क और मूर्तियों को जादवा दिया गया. उत्तर प्रदेश की जनता तो उलझ जाती है इन राजनीतिज्ञों के द्वारा खेले गए जाति और धर्म आधारित लामबंदी के आधार पर ही हार जीत हो जाती है. विकास और विनास के मुद्दे खो जाते है, जनता फिर सोच ही नहीं पाती है विकास के लिए मतदान करे और विनास करने वाले यानि सरकारी पैसे जो आम जनता का है उसे लूटने वाले को किनारे कर दे.
जरा हम और आप भी तो सोचे और समझे आज जो हरकत मायावती जी ने इस प्रदेश की जनता और जनधन के साथ कर दिया, शायद यही काम हर आनेवाला मुख्यमंत्री या प्रधान मंत्री करने लगा तो देश की क्या हालत होगी. इन नवीन स्वमुर्ति मंदिरों की बाढ़ आ जाएगी. नागरिक तो कुछ कर भी नहीं पायेगा, वह तो वैसे भी सत्ता के कामो की विवेचना पांच वर्षो के बाद ही कर पाते है. हर चौराहों और मुख्य जगहों पर सरकारी आदेश पर मुख्यमंत्री और उनके चुनाव चिन्हों के प्रतीक मूर्ति के रूप में विद्यमान होगे. कल्पना कीजिये प्रदेश के विकास का क्या होगा और जगहों की स्थिति क्या होगी. अब तो ऐसे ही मामलो को देखते हुए अन्ना जी के इन माननीयो के वापसी के अधिकार की जरूरत महसूस हो रही है.
जो देश का प्रजातान्त्रिक कानून/सविधान व जनता नहीं कर सकी,वही काम चुनाव आयोग ने आदर्श चुनाव सहित के आधार पर कर दिया. हम इसके लिए चुनाव आयोग के प्रति आभार प्रकट करते है. इन मूर्तियों को ढकने से एक सन्देश तो इन नेताओ और माया जी को मिला ही और भी कार्यवाही हो सकती है. शायद ही अब कोई दूसरा नेता इस तरह के विवादित निर्णय लेकर अपनी- अपनी मुर्तिया लगवाना चाहे.
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