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आपका पैगाम आया.
और मुझे देखो,
आपको जवाब भी न दे पाया.
कोई कम भी नहीं,
खली मुली जीवन जीना भी,
कम है भला,
तब भी कुछ पल इस जीवन के
तुम्हे निकल कर तो देना दूर,
दो शब्द, नहीं लिख पाया,
बोल पाया,
शायद मै स्वार्थी हो गया हूँ,
अपने में ही रम गया हूँ,
तमाम कमिया आ गयी है मुझमे,
मै अँधा हो चला हूँ,
इस भौतिकता में,
या जीवन में अहसास का खात्मा है,
या विषाद है, या विषमता है,
मै तो समझ नहीं पाया,
आप ही समझो,
ये मेरी नासमझी समझना,
शायद दूसरो की तरह
उन नेताओ की तरह
उन अफसरों की तरह
उन देश के रणबकुओ की तरह
जिन्होंने कभी युद्ध लड़ा ही नहीं,
जिंदगी में कही अड़ा ही नहीं,
कुछ किया भी नहीं
फिर भी यश पा रहा है,
अपने मद में,
चाहे धन का हो,
तन का हो,
मन का हो,
जिसका भी हो, इतरा रहा है.
गुस्ताखी समझना,
जो भी वो समझना,
मेरे जैसा समझना,
अपने जैसा समझना,
यहाँ समझना,
वह समझना
हर जगह, हर तरह से समझना,
तब एक लाईन लिख देना,
तुमने गलती की है,
तुमको मै सजा दूगा,
एक बार नहीं हर बार,
दिल से लगा कर माफ़ कर दूगा.
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