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अपराधी को अपराधी कहना अपराध है ?

BEBASI
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ये देश हमेशा ही बहुत ही आगे रहा है, चाहे जिन परम्पराओ के निर्वाह का माजरा हो. राजा महाराजो का शासन हो या मुगलों का या फिर प्रजातंत्र का. हर कही पर हम हिन्दुस्तानी एक अलग ही छाप छोड़ देते है. आज प्रजातंत्र में भी हमने इस देश के इतिहास में अजीबो- गरीब कारनामो को कर दिखाया. उन्ही कारनामो एक अन्ना भी है, अन्ना प्रभाव भी है.

बात तो पहले भी भ्रष्टाचार ही नहीं बल्कि इन दागी यानि अपराधी सांसदों के होती थी. ये जो भी बात अन्ना ने कही कोई नयी बात नहीं है. बस फर्क है इतना है अच्छी बातो की अच्छी पहल करने वाला एक अच्छा आदमी का मिलना. गाँधी भी कभी कोई न कोई अभियान अंग्रेजो के खिलाफ और जनता के हित में चलाया करते थे. लोग उनको भी हाथो हाथ लिया करते थे. गाँधी जी क्या करे? जब राजनीतिक पार्टियों में अपराधियों को ही राजनेता बनाना पसंद आने लगा. अब गाँधी जी तो रहे नहीं सो किसी न किसी को तो यह काम करना ही था. कोई न कोई तो आगे आता ही सो अन्ना जी आगे आये और वही बात जो दूसरे कहा करते थे वही अन्ना जी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ इमानदारी से मुहीम चलाया. अपनी जान की परवाह लिए बगैर, अपने सहयोगियों को साथ रखते हुए और पूरी सरकार की चोट सहते हुए अपनी मुहिम को जरी रक्खा और उनकी बात जनता को सुनाई देने लगी. इन्ही अन्ना जी की इकाई में एक केजरीवाल जी भी है. ये भी भ्रष्टाचार के विरोध में अन्ना जी के साथ जुड़े हुए है. उनकी भी बात जनता को अब समझ में आने लगी है.

अभी हाल में टीम अन्ना ने कहा रोज घोटाले खुल रहे है. तमाम मंत्रियो, सांसदों आदि पर बलात्कार, हत्या सहित तमाम प्रकार के मुकदमे दर्ज है, फिर भी वे खुले आम संसद में बैठे जनता से अपनी इज्जत करा रहे है. भला ऐसे लोग कैसे माननीय हो सकते है. टीम अन्ना ने कहा “कई नेता जो संसद में बैठे हैं वह भ्रष्टाचार में लिप्त हैं फिर भी किसी पर कोई कार्यवाही नहीं होती। ऐसे में अगर जनता यह कहती है कि संसद में चोर-डकैत बैठते हैं तो इसमें गलत क्या है।”जनता को भी गौर करना ही चाहिए कोई भी अपराधी उनका प्रतिनिध न बन जाये. लेकिन जोड़- तोड़ से और पार्टियों में अपनी हनक जाता कर टिकट ले कर बैठ जाते है सत्ता के गलियारे में. न तो कानून न ही पुलिस या साशन प्रशासन इनके खिलाफ कुछ कर पता है और न ही न्यायलय से कोई खास दंड मिल पता है.

अपराधी को अपराधी कहना कौन सा गलत है और कहा कानून कहता है ये तौहीन है किसी की. जरा आप ही सोचिये हमारे बीच में किसी का मर्डर कर सत्ता हथिया कर हमारे सामने ही फूल माला पहने और कानून को ठेंगा दिखाए तो यह कौन सा संसद की गरिमा बढ़ने का काम है. यदि कोई भी चोर उचक्का संसद में घुस कर छिप जाये तो तो उसे चोर उचक्का या अपराधी नहीं कहा जायेगा तो फिर किस नाम से जाना जायेगा, इसे कम से कम उस संसद को परिभाषित करना चाहिए जो उन्हें माननीय मानती है.

मुलजिम हो हत्या का, डकैती का, लूट का,अपरहण का और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधो का, अगर वह संसद में पहुच जाये तो उसकी इज्जत की जाये और उसे चरित्रवान ही नहीं गरिमावान समझा जाये, ये कैसा कानून. अन्ना टीम अपनी जगह बिलकुल सही है. उसने जो भी कहा इसके पहले भी यही कहा जा चूका है और चुनाव आयोग तक कोशिश कर चुका है इन दागियो को संसद न पहुचने देने का प्रयाश. लेकिन इनकी पहुच के कारण ही आज राजनीतिक इन अपराधियों को अपने साथ रखना चाहते है. अब तो चाहिए किसी भी प्रकार का आरोप दर्ज है जघन्य अपराध का , तो वह चुनाव न लड़ सके और न ही उसमे किसी प्रकार से हिस्सेदारी कर सके. अगर किसी भी कोर्ट में कोई भी मुक़दमा दर्ज है तो उसे तो दागी कहा ही जायेगा. जनता ने ही बनाया था प्रजातंत्र का स्वरुप और जनता ने ही की थी क्रांति. जनता को ही अधिकार भी होना चाहिए इन दागियो को हटाने का, संसद से बहार के रस्ते दिखाने का. जनता भला एक हत्यारे हो हत्यारा क्यों न कहे. तब तो आम लोग हत्या कर माननीय ही बनाने है और लगेगे. यही प्रथा इस प्रजातंत्र का अंत भी तो करने की और अग्रसर है.

आज उस संसद को अपने अन्दर भी जांक कर देखना चाहिए आखिर कही कोई अपराधी संसद के रूप में छिपा तो नहीं. यदि है तो उसे बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए. बजे इसके संसद को साफ सुथरा करने के अन्ना प्रयासों को धार रहित करने के लिए तमाम तरह की दलीले दी गयी. यहाँ तक की उत्तर प्रदेश से सरकार बनवाने वाले मुलायम जी ने भी अन्ना टीम को बुरा- भला कहा. जरा मुलायम ने यह सोचा जनता को डराने और भयभीत करने वाले या अपराधी नेता कैसे प्रजातंत्र के स्तम्भ हो सकते है. कैसे संसद या विधान सभा की गरिमा सुरक्षित रह पायेगी. बजाय अपनी गलतियों को सुधर किये ये तमाम नेता अपने बचाओ में डट गए. संसद की गरिमा को खतरा बताते हुए तमाम दलीले दे अन्ना टीम को ही इन अपराधियों ने मुलजिम बनाने का अभियान चला दिया. यही प्रजातान्त्रिक तानाशाही है. जो सत्तानशीं है वे पाच वर्षो के लिए अपने को खुदा मानते है. भला एक अपराधी कैसे जनता का रहनुमा बन सकता है.

टीम अन्ना पर कोई भी अवमानना का मामला बनता ही नहीं बल्कि जरुरत तो असली यही है की संसद ही नहीं विधान सभाओ की सफाई की जाये और जो अपराधी सत्ता के सहारे माननीय बन गए है वे बाहर हो सके. और एक अपराधी सवैधानिक संस्थाओ में पहुच कर अपने मामलों को प्रभित न कर सके और संसद सहित तमाम इकाईयों की गरिमा बनी रहे. जन लोकपाल का खामयाजा कांग्रेस ने भुगत लिया है. ये जनता है सब जानती है, लेकिन चुप भी रहती है और अपने फैसले को भी दिखा देती है. अन्ना इफेक्ट ही तो था उत्तर प्रदेश में भयानक और अपमानजनक हार का सामना कांग्रेस को करना पड़ा. आज कांग्रेस कोशिश में है कसीस भी प्रकार से लोकपाल को पारित किया जाये. ये कोशिश लोक सभा के चुनाव के समय पर संभव भी हो सकता है. लोकपाल का मामला टला नहीं जा सकता है.

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