- 282 Posts
- 397 Comments
हम तो वो लिख देते जो मन में अत है. ये कभी कभी मानव के कुछ प्रमुख लोगो की गरिमा को अघात पहुचाता है. आदमी घबड़ाता है और जनाब पड़ना भी नहीं चाहता है. लोग जानते है आपके कम्पूटर में अगर कुछ भी फाईल खोली गयी तो उसकी जानकारी हो जाती है. तभी तो लोग उन लोगो को जो खर और तीखी या फिर कह लो सच्ची बात लिखते है उन्हें पढ़ना नहीं चाहते है. ठीक है तो क्या उन विशेष मानव हित में लिखना और पढ़ना छोड़ दिया जाये. यदि हम लिखेगे नहीं तो लोग जानेगे भी नहीं की वे विशेष मानव है. इधर कुछ वर्षो से लोगो में भय का आलम इतना बढ़ गया है की रत ही नहीं शाम होने के कारण घर से निकलना भी नहीं चाहता है. लोग कुछ भी कहना नहीं चाहते.देख कर भी देखना नहीं चाहते. सवेदनाये मर रही है. इन्सान अन्दर से डर रहा है और इतना डर गया है की उसका दिल ही कमजोर पड़ गया है. यहाँ तक वो उन बातो को पढ़ना भी नहीं चाहते. जब की अन्दर से मन तो रहता है, छुप कर पढ़ भी सकते है, देख भी सकते है. यही घटना आम आदमी के साथ हो रही है और हर आदमी एक दूसरे को देख कर भी नहीं देख रहा है.
अभी हाल की ही घटना तो है जब भरे बीच बाजार में लोगो ने एक अकेले आदमी को केवल मारा ही नहीं मारते मारते लगभग मार ही डाला, सरे हम हर एक देखने वाले को ललकारा, एक भी इंसान नहीं निकला और सभी उन्हें देख कर कापने लगे. अभी कुछ जान भी है, शरीर उस मानव का कुलबुला रहा है, दर्द और चोटों से वह बिलबिला रहा है, किसी की हिम्मत ही नहीं पड़ रही कुछ कर सके, एक मानव मानव को बचा सके. वो मर रहा है, पानी मांग रहा है, लोग मुंह घुमाये है, इधर को, उधर को, वो चिल्ला रहा है. आखिर उसका अंत हो जाता है. आदमी आदमी से डर जाता है और आदमी के साथ आदमियत मर जाती है. ये है आज के सच. लोग भयभीत है, आदमी से ही. और भय से ही मर रहे है. अन्दर ही अन्दर घुट रहे है. मर- मर कर जी रहे है.
हद तो तब हो गयी जब एक पडोसी के घर के एक सदस्य की दुर्घटना में म्रत्यु हो गयी, मजे की बात वो वही से गुजरे और भीड़ देख कर कोई होगा ठीक है, कह कर उचटी नजर डाल निकल लिए, मुंह खून से सना होने के कारण पहचान भी नहीं पाए. शायद रुक कर गौर से देखते तो जरूर किसी न किसी तरीके से पहचान लेते. पुलिस के झंझट से बचाते हुए वे आगे बढे और घर पहुचे तो उनका अपना अस्पताल में होने की खबर से दौड़े- दौड़े पहुचे, तब तक देर हो गयी थी डाक्टर ने साफ साफ कहा यदि ये एक घंटे पहले आ जाता तो कोई गुन्जयिस थी. अब वो रो रहे थे और चिल्ला रहे थे, हाथ पैर पटक रहे थे, अपना कोई उनका साथ छोड़ कर चला गया था. यही तो भय का कारण. जो आप अपनो के लिए भी भय को अपने अन्दर से नहीं निकल पा रहे है.
जिधर देखो भय ही भय दिखाई दे रहा है. हर कोई दुबक रहा है, कोर्ट के चक्कर में तो कही मुकदमो और खर्च के झंझट में तो कही अपने मजबूत के भय से तो कही गुंडा समूहों के भय से हर कही कुछ न कुछ तो भय का भागीदार आम आदमी हो ही गया है. सुबह से ही भय से सुरु जिनदगी शाम को भय में ही ख़त्म होती नजर आती है. मुहल्लों में भी अब दो चार लोगो के समूहों की दादागिरी या घर में लड़की है तो उसके लौट कर घर तक न आने की रह में भय ये सब भय ही तो है. सड़क में दुर्घटना का भय, रोजगार में उगाही का भय और नौकरी में इमानदारी का भय. जिधर भी देखो आज आदमी भय से ही तो मर रहा है.
जब हम पैदा होते है तो भगवान का भय, जिसे तमाम उम्र ढोते ही तो रहते है. ऐसा करेगे तो पाप पड़ेगा और ऐसा नहीं करेगे तो पाप पड़ेगा. कही भी यह नहीं यदि कोई आदमी हमारी वजह से मरेगा तो पाप पड़ेगा. आज सामने जब आदमी मर रहा होता है तो हमारा पहला धर्म जो मानवता का होता है उसे क्यों नहीं जानते है हम. कभी हमारे साथ वही घटना तो हो सकती है जो आज दूसरो के साथ हुई है और हम जानबूझ कर मुह मोड़ कर निकल ए केवल इस लिए की किसी आदमी को जीवन देने के लिएय हमें कुछ समय पुलिस में बर्बाद करना पड़ेगा.
आज भय चाहे रोजगार का हो या नौकरी का या किसी भी दूसरे तरीके का, हर जगह केवल हमारी ही कमजोरी आती है तभी तो दूसरा स्वभाववश हमारा उत्पीडन करने लगता है. सोचिये और जोर डालिए कभी आप भी तो दूसरो को भयभीत करना चाहते थे, यही समाज है यहाँ हर जीव केवल खाना और जीने के लिए एक दूसरे को डरना और संघर्ष करना चाहता है. यही कारण है आज समाज के हर गली में दमंग मुह उठाये खड़े नजर आते है. वे केवल आपका हक़ छिनने का काम करते है. और आप भय से सो नहीं पते, तमाम बीमारियों को घर कर लेता है शरीर. उन्ही में सोच सोच कर आप ही हम सभी मर जाते है. तमाम बीमारियों का उल्लेख भय की वजह मानकर आयुर्वेद में उल्लेख किया गया है. जो दमंग है वे तो और बुरे फसते है मानसिक और सोचने के चक्कर में भय के चक्रव्यूह में बुरी तरह फस कर जीवन अल्प समय में ही गवा देते है.
अब आप सोचना सुरु कीजिये मै या हम सभी मानव है और इस समय जो भी समाज में घट रहा है इसके रचने वाले भी हमी है कोई दूसरा नहीं. सभी मानव है कोई भी बड़ा छोटा नहीं. समझो हो गया बेडा पर.आप किसी के लिए करेगे तो कोई दूसरा भी आप के साथ कुछ न कुछ तो जरुर करेगा ही. जो डर आपके सामने है वही डर दूसरो के लिए भी तो है. जो जानते है हमी है उनका कुछ भी नहीं बिगड़ता. वही मानव मानव का उत्पीडन कर रहा है. उठो जागो और अपने अन्दर के सभी भय को समाप्त कर दो. जीवन को नया आयाम दो, जरुर कुछ न कुछ होगा. लोगो को जीवन दो, दूसरे तुम्हे देगे.
अपने अन्दर झांको और देखो कही से आप भयभीत है, नहीं तो हो ही नहीं सकता, उत्तर में हा ही है. तो फिर अन्दर से भय को निकल दो हर आदमी को आदमी समझो भला आदमी से क्या भयभीत होना. जो यहाँ है नहीं, या जिसकी गाथा हमने या तुमने लिखी है उसे पढ़ कर कल्पनाओ में भयभीत होना उचित नहीं है. अपने को समझाओ ही नहीं हकीकत से रूबरू होओ I देखो आदमी की कृति और धरती में आदमी के कमाल को देखो हिम्मत से I भय त्याग कर एक अनोखा आनंद मिलेगा. जब भी आप किसी आदमी को किसी मानव जनित या प्रकृति जनित उत्पातो से बचायेगे तो एक नए जोश ही नहीं अपने में कुछ जरुर नयापन पायेगे.
Read Comments