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एक खबर छपी है,
किसी के मर मिटने की,
दूजी है मारने और मिटाने की,
ऐसी तमाम है खबरे,
जिन्हें हम देखते ही नहीं,
पढ़ते ही नहीं, सुनते ही नहीं,
आदमी को ही नहीं,
आदमियता को मिटाने की,
क्योकि हम आगे बढ़ गए है !!!
हमारी तरक्की हुई है,
हम आगे बढे है,
पडोसी से, अगल- बगल वालो से,
मोहल्ले, जिले और उन सबसे,
जो हमारे करीब है,
इस कामयाबी ने हमें ऊपर उठा दिया है,
आदमी से रिश्तो को मिटा दिया है,
हम भूल गए है,
कभी कोई अपना भी था,
किसी ने हमें इतना बड़ा भी किया,
किसी ने ज्ञान दे आगे बढ़ाने
वाला भी कोई था !!!
आज कोई दिख नहीं रहा है,
मेरे आगे सभी छुद्र हो गए,
नजदीकिया भी मिट गयी है,
माँ के मायने ही कहा,
उसकी हालत को देखने
समझने का वक्त कहा,
पिता तो गुजरे हुए ज़माने के सामान है,
और किसकी कहे, जो है अपना,
मैंने कभी जाना ही नहीं शब्दों को,
रिश्तो को, इंसानों को,
ये सभी बाधा के सामान है,
क्योकि हम आगे बढ़ गए है !!!
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